Thursday 13 August 2015

आपणे जोधपुर जिले रो सामान्य परिचय


क्षेत्रफ़ल
22,850 वर्गकिमी
साक्षरता
57.38 प्रतिशत
समुद्रतल सु ऊँचाई
284-450 मी.
आदमियारी साक्षरता
73.86 प्रतिशत
बारिश रो औंसत
320 मि.मी.
लुगाया री साक्षरता
39.18 प्रतिशत
उच्चतम तापक्रम
नगरपालिका
3
न्युनतम तापक्रम
पंचायत समितियाँ
9
कुल जनसंख्या
28,80,777
गांव पंचायते
339
आदमियो री संख्या
15,09,563
राजस्व गांव
1080
लुगाया री संख्या
13,71,214
तहसील
7
ग्रामीण जनसंख्या
शहरी जनसंख्या

जोधपुर जिल्लो देश भक्ति ,साहस ,त्याग ,संस्कृ ति अने विकास री दृष्टि सु हरदम गौरवशाली रहयो है।जोधपुर जिल्लो थार मरूस्थल रो प्रवेश द्वार अने सुर्य नगरी रा नाम खुदरी अच्छी ओळख बणायोडो है । ओ इतिहास प्रसिद्ध परिवार चौहान अन राठौड राजपुतारी कर्म भूमि रियो डी है। राठौड राजपुता रा अधिकार मे आया पछे जोधपुर मध्यकाल मे मेहत्वपुर्ण भुमिका अदा करी है।मालदेव,उदयसिह ,जसवंतसिह अने भक्तसिह जेडा शासको रा नाम इतिहास मे प्रसिद्ध है। राठौड शासका री छतरिया य़े मंडोर अने जसवंतपुरा मे स्थित है।कला अने स्थापत्य री नजरा मुं नमुना मे गिणना मे आवे है।जोधपुर ने स्थानिय भाषा मे जोधाणा नाम सु जाणनामे आवे है।इरी स्थापना राव जोधाजी सन 1459 मे करी थी।
जोधपुर जिलो राजस्थान रा पशिचमी भाग मे 26 ं से 27 ं.37 ं उतरी अक्षांश अने 72 ं.55 ंसे 73 52 पूर्व देशान्तर रा बीच मे स्थित है। इरा उत्तर मे बीकानेर अने जैसलमेर ,दक्षिण मे बाडमेर अने पाली और पूर्व मे नागोर जिला री सीमा है। पशिचम मे इरी सीमा जैसलमेर जिला मु इने पाकिस्तान री सीमा तक जावे है ।जोधपुर जिला री जलवायु शुष्क पण स्वास्थ्य वर्धक है।जिला मे पत्थर अने चूनो पत्थर महत्वपूर्ण खनिज है।पहाडिया रे चारो ओर वन क्षेत्र है।


दर्शनिय स्थल

मेहरानगढदुर्ग
इतिहास-
मेहरानगढ दुर्ग देश रा प्रसिद्ध दुर्गा मुं एक है जे स्थापत्य कला ,गौरवमय इतिहास अने लोक संस्कृ ति रो सबने ध्यान करावे है। दुर्ग री नीव 12 मई ,1459 रे राव रिडमल रो छोटो रावजोधा जे भु-तल सु 400 फ़ुट ऊंची चिडिया नाथ री पहाडी पर रखी ,अने मयुर ध्वज रा नाम सु भी जाणना मे आवे है । इरो निर्माण सन 1807 ई . मे साहित्यिक अभिरुची रा धणी महाराज मानसिंह करवायो थो फ़तेह पोल रो निर्माण सन 1707 ई मे महाराज अजीतसिंह मुगलो ने हराया पछे किला मे पहारता करवायो थो।
बनावट-
मोटा मोटा पाषाण खंडा सु निर्मित आ दुर्ग री दीवारा 20 सु 120 फ़ुट तक ऊंची अने 12 सु 70 फ़ुट चोडी है अने ओ दुर्ग 500 गज लंबाई अने 250 गज चोडाई मे फ़ैलीयोडी है । पूर्व दिशा मे बणियोडो इरो भव्य प्रवेश द्वार जयपोल केवणा मे आवे है। इरा अतिरिक्त दुर्ग मे अमृतपोल जोधाजी रो कलसा ,लोहपोळ, सुरजपोल ,अने गोपाल पोळ भी है ।किला मे कुछ महेल भी बणियोडा है।जेणामे थाबला,दीवाळ अने छत पर सानारो बारीक कामवाळो मोती महेल अने भितीचित्रो मे सजयोडा फ़ुल महेल कला री दृष्टि सु अदभुत है। इरा अलावा श्रृंगार चौकी अने चामंुडा देवी रो मंदिर दर्शनीय है।किला रा बुर्ज पर स्थापित शंभु बाण, गजमी बाण अने अन्य छोटा मोटा तोप खुद रो इतिहास उजागर करे है।मेहरान गढ़ किला रा संग्रहालय मे मारवाड राजवंश री सांस्कृतिक शौर्य अने एतिहासिक महत्च री कळाकृ तिया एक अदभुत झांकी प्रस्तुत करियोडी है।



जसवंतथडा-
मेहरान गढ़ दुर्ग रा नजीक स्थित देवकुण्ड जलाश्य रा किनारे संगमरमर री आ नायाब इमारत रो निर्माण जोधपुर नरेश जसवंतसिह द्वितीय री याद मे महाराज सरदार सिंह सन 1906 मे करवायो थो।जसवंत थडा री खुबसुरती देखताइज जाण जावे है । अटे स्थित भवन मे जोधपुर मारवाड रा राठौड नरेशा री वंशावली रो सुंदर चित्रण करियोडो है। अटे एक सुरम्य उधान भी है ।
मंडोर-
जोधपुर सेर मे8 किमी. उतर मे बणियोडो मंडोर रो इतिहास बोत हीज पुराणो है । मंडोर दुर्ग तो अबे अटे कोनी है पण विरा अवशेष अवश्य अटे उपलब्ध है।बौध्ध शैली री बनावट वाला स्तंभ अन अने हरजार कक्षा रा अवशेष अटे है।कोई जमाना मे अटे मांड्व्य ऋृ षि री तपो भूमि थी जिण रे वजे सु इरो नाम मांड्व्यपुर पडीयो सातवी शताब्दी मे अटे मांड्व्यपुर सु मंडोर केवणा मे आवे है।एक अनुमान हे कि मडोर सेर री स्थापना महोदर नामक दैत्य राज से करी थी । अने ओइज स्थान पर वो वीरी छोटी मंदोदरी रा ब्याव लंकाधिपति रावण साथे करवाया था।
अटे मिलियोडा अवशेष मुं चौथी शताब्दी रो एक तोरण अने एक गुप्तकालीन मुर्ति महत्वपूर्ण है ।की स्त्रोता मु आ बात प्रमाणित रेयुडी है कोई समय अटे बौध्ध शैली रो एक भव्य दुर्ग थो ।इतिहास कारो रो माननो है कि वो भुकम्प मे नष्ट होगियो । किला रा भग्नावेषो मे सातवी शताब्दी रा एक वैष्णव मंदिर रा अवशेष भी है ।अेडो मानना मे आवे हे के पुराणा समय मे अटे नागवंशी राज करता था।
पौराणिक ,धार्मिक तथा पर्यटन री दृष्टि मुं आज भी मंडोर रो महत्व अक्षुण है। मंडोर रो दुर्ग ,देवल ,देवताओ री साल,जनाना उधान, संग्रहालय ,महेल अने अजीत पोल दर्शनीय है। अटारी प्राकृतिक छटा अने हरीयोडा भरीयोडा उधान मोटी संख्या मे पर्यटको ने आकृषित करे है।इरा मोटा मोटा बगीचा मे जोधपुर रा पुराणा शासको रा छतरी नुमा स्मारक है।मुर्तिया मु सजयोडा अने उमा शिखरो मु मडियोडा स्मारक अने छतरिया मारवाड रो गौरव दर्शावे है। अटे 33 करोड देवी देवताओ री गद्दी भी दर्शनीय है। इर मे देवताओ अने संत महात्माओ रा चित्र है।



उम्मेदभवन
एशिया रा भव्य प्रसादो मे जोधपुर रा उम्मेद भवन रो स्थान शीर्ष पर है।ओ प्रसाद एक छोटी पहाडी उपर स्थित है। अने छीतर पत्थर म बणियोडो रेवणा मु इरो नाम छीतर पैलेस जाणना मे आवे है।ओ भव्य प्रसाद री नीव श्री उम्मेदसिह तत्कालिन शासक 18 नवमबर,1928 ई मे राकी आने 1940 मे ओ बण ने तैयार वेगीयो इरो निर्माण अकाल राहत कार्य वास्ते पुरो रियो अने इरा पर वो जमाना मे 1.21 करोड रिपीया व्यय रीया।वर्तमान मे उम्मेद भवन मे संग्रहालय ,थियेटर , केन्द्रिय होल अने उधान दर्शनीय है ।
नेहरुपार्क
सेर रा विच मे बणीयोडो ओ उधान जोधपुर रा व्यवस्थित उधानो मु एक है।इरो निर्माण सन 1966 मे हियो हो अटारी फ़ुलवारी अने प्राकृतिक रुप मु बणियोडा जहाहनुमा तलाब दर्श्नीय है। जोधपुर सेर रे मध्य मे उम्मेद उधान ,सरदार संग्रहालय अने सुमेर सार्वजनिक पुस्तकालय भी दर्शनीय स्थल है।सेर मे प्राचीन भव्य अने विशाल मंदिर मौजूद है।जीर मे राजा रणछोड्क रो मंदिर कुंजबिहारी ,अचलनाथ , घनश्यामल रो मंदिर तीज माताजी रो मंदिर गणेश मंदिर भैरव मंदिर बालाजी मंदिर अने कागा रो शीतला माता रो मंदिरं आदि सब प्रसिद्ध है।
घावा
जोधपुर सु 45 किमी. दुर ओ वन्य जीव अभ्यारण्य मे बोतीज मोटी संख्या मे भारतीय बारासिह ,हिरण आदि अटे फ़ीरता देखणा मे आवे है।


ओसिया
जोधपुर सु लगभग 65 किमी. दुर जोधपुर- फ़लौदी मार्ग पर ओसिया कस्बा महत्वपूर्ण पर्यटन करना जीवा है। ओ कस्बा रा पत्थर री कलात्मक खुदाई पर पांचवी शताब्दी पेला री सभ्यता अने संस्कृति री झलक देखणा मे आवे है। अटे प्रचीन देवालय मे सचियाय माता रो मंदिर हरिहर रा तीन मंदिर है जो वो युग रा भारतीय वास्तुकला अने संस्कृति रा दर्शन करावे है। अटारा जैन मंदिर ,सुर्य मंदिर भी दर्शनीय है ,ओ छोटा क कस्बा मे कुल 16 मंदिर है जो 7 मु 10 वी शताब्दी रा बिचला है।
इरा अलावा फ़लौदी रा पार्शवनाथ अने रो मंदिर भी दर्शनीय है। फ़लौदी रे पास ग्राम रा नजीक शीत काल मे कुरजा पक्षी बोत मोटी संख्या मे आवे है । जीने देखणा वास्ते देशी विदेशी पर्यटक भी अटे पोंच जावे है ।



कला औंर संस्कृति

चित्रकला रे क्षेत्र मे जोधपुर रो बोत मोटो स्थान है।प्राचीन चित्रा मे लौकिकता अने स्वाभाविकता रो सांगोपांग चित्रण है। अटे हस्त कला उधोग भी बोत जल्दी विकसियो है। जोधपुर मे रंगाई, छपाई , बंधेज,लकडिया री कारीगरी ,दरी निर्माण ,चामडा री जुतिया अन्य उपयोगी अने सजावटी वस्तुओ ,वहाईट् महल कलात्मक वस्तुआ अने अन्य हस्तकला उधोग अटे प्रगति पर है। अटे प्रतिवर्ष उधोग अने हस्तशिल्प मेळा रो भी आयोजन रेवे है ।
लोक संस्कृति रा घराणा जोधपुर मे लोकगीत संगीत रा हाते शास्त्रीय गायन, वादन, अने नर्तन कला ने प्रबल समर्थन मिलियोडो है। अटे राजस्थान संगीत नाटक री अकादमी रो मुख्यालय है।ललित कलाओ मे सर्वागीण विकास अने प्रसार वास्ते राष्ट्रीय कला मंडल भी कार्यरत है। जोधपुर मे नागपंचमी तेवार मे मंडोर मेनागपंचमी मेळो लागे है । अने दशेरा मेला मु एक दिन पेला जोधपुरी कुलदेवी चामंुडा ने प्रसन्न करवा वास्ते चामंुडा माता रो मेलो लगावणा मे आवे है।चामंुडा माता रो मंदिर जोधपुर किला मे स्थित है।
अटारी मसुरीया पहडिया ने सुंदर पर्यटन स्थल रा रुप मे विकसित करणा मे आयो है। अटे रावण रो चबुतरा नाम रो स्थल पर दशहरा रो मेळो लागे है। मसुरिया पहाडी पर बाबा रामदेव रो मंदिर है। अटे बाबा रामदेव रो मेळो लागे है। पर्यटन कला अने सांस्कृ तिक विभाग री और सु जोधपुर मे प्रतिवर्ष मारवाड महोत्सव रो आयोजन करणा मे आवे है।


कई खरीदा ?
बंधेज रा कपडा , लहेरिया , जोधपुरी चुनर ,वहाईट महेल मु बणियोडी सजावटी चीजा,लकडी अने पीतळ रा रमकडा, कलाकृतिया - चमडा री जुतिया ,चपला आदि ,खरीदारी रा प्रमुख स्थल है। नई सडक , सरदार मार्केट कटला बाजार ,स्टेशन रोड,त्रिपोलिया बाजार अने जोहरी बाजार जोधपुर रा मावा अने कांदा री कचौरी बोत ही प्रसिद्ध है।


जोधपुर कीस्तर पुगा?
वायु मार्ग -
दिल्ली ,मुंबई ,जयपुर अने जैसलमेर मु उडावणा वास्ते उपलब्ध है । हवाई अड्डा वास्ते शहेर मु करीब 5 किमी. दूर रानानाडा मे स्थित है।पुरी जानकारी वास्ते फ़ोन न. 230617 अने आरक्षण वास्ते फ़ोन न. 2636757 मे संपर्क करणा मे आवे है।
रेल मार्ग
दिल्ली ,वाराणासी , हावडा जैसलमेर आदि शेरा मु रेलगाडिया उपलब्ध है । मरुधर एक्सप्रेस ,पशिचम एक्स्प्रेस । पुरी जानकारी वास्ते फ़ोन न. 131 मे संपर्क करो ।
सडकमार्ग
इणवास्ते सीटी बस सेवा उपलब्ध है ।जाण्कारी वास्ते फ़ोन न. 2544686 अने 2544980




आपणे राजस्थान रा प्रतीक चिह्‌न

राजस्थान रा प्रतीक चिन्ह

राज्य वृक्ष खेजड़ी
खेजडी - राजस्थान रो राज्य वृक्ष (1983 मांय राज्य वृक्ष रो दर्जो) वैज्ञानिक नाम- प्रोसेपिस सिनेरिया, उपनाम- कल्पवृक्ष, जांटी, शमी, थार रो कल्पवृक्ष, रेगिस्तान रो गौरव।

राज्य पुष्प रोहिडा
रोहिडा - राजस्थान रो राज्य पुष्प (1983 मांय राज्य पुष्प रो दर्जो) वैज्ञानिक नाम- टिकोमेला अंडूळेटा उपनाम मरुशोभा, रेगिस्तान रो साग़वान।

राज्य नृत्य घूमर
घूमर - राजस्थान रो राज्य नृत्य, इण नृत्य ने राज्य री आत्मा भी केविजे है।

राज्य पक्षी गोडावण
गोडावण - राजस्थान रो राज्य पक्षी (1981 में राज्य पक्षी रो दर्जो) वैज्ञानिक नाम- क्रायोटिस नाइग्रीसेप्स, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (शमिला पक्षी) अर सोहन चिडिया रे उपनाम सु प्रसिद्ध। सोंकलिया (अजमेर), सोरसण (बारां) अर राष्ट्रीय मरु उधान में पायो जावे है।

राज्य पशु चिंकारा
चिंकारा - राजस्थान रो राज्य पशु (1981 में राज्य पशु रो दर्जो) वैज्ञानिक नाम- गजेला-गजेला, छोटा हिरण (एंटीलोप) रे उपनाम सु प्रसिद्ध।


राज्य खेल बास्केटबॉल
बास्केटबाल - राजस्थान रो राज्य खेल (1948 में राज्य खेल रो दर्जो )

आपणे राजस्थान रो खान-पान


राजस्थान रो खान-पान प्राय ः आपरी सात्विकता रे वास्ते जाणो जावे हैं।प्राय हिंदू शाकाहारी भोजन रो उपयोग करे हैं पण कुछ लोग मांसाहार रो भी उपयोग करे हैं। मारवाड री अर्थव्यवस्था पशुपालक रेई हैं,इण वास्ते भोजन मे दूध व दूध सू वणियोडी चीजा जिया की दही ,छाछ ,मटठो,घी आदि रो खावा मे उपयोग होवे हैं।साधार ण लोगो मे ज्वार,मोठ ,कुलथ ,मसूर,उड्द औंर तूर रो उपयोग होवे हैं।इणरे अलावा चावल, गेंहू,मकई औंर दुसरे अनाजो रो भी उपयोग होवे हैं पण बाजरे रो उपयोग ज्यादा होवे हैं। सस्ती होने रे कारण गरीब लोगो मे भी इरी बहोत खपत रेवे ।किसानो रे अलावा दूसरा ग्रामीण भी खाणे मे सागरा औंर राबा बहोत प्रचलित हैं।
साधारण लोग दिन मे तीन बार भोजन ग्रहण करे हैं- सीरावण (नाश्ता),दुपहरी (दिन रो भोजन) औंर रात बियालु (रात रो भोजन ) ऩाशते मे बाजरे री रोटी रे साथे घी ,दही, दूध व,मटठो लेवीजे हैं।सब्जियो मे मेथी, पालक या सोया आदि रो उपयोग होवे हैं। दूपहरी मे सोगरा ,मूंडा या मोठरी दाल ,प्याज औंर एक लालमिर्च रो भोजन करिजे। लोग खीचडी रो भी सेवन करे हैं। ओ सब भोजन स्वास्थ्य रे अनूकूल मानीजे हैं।
पांच तरह रे खाधो सू वणियोडी पंचकुट मारवाड री खासियत हैं। जिणमे सांगरी,खैंर (सुखे मेवे ), कुमाथिया (बील),अमचूर औंर मिर्ची होवे हैं। सब्जियो मे कैंर , सांगरी ,फ़ोग,ककडी, फ़लिया ,टिंडा ,खींपोली ,कंकेडा सब जगा होवे हैं।इरे अलावा मूली, गाजर ,शकरकंद औंर तरबूज भी उगाविजे हैं।
अठे क ई तरहा री मिठा ईया औंर नमकीन विश्‍व मे विख्यात हैं। जोधपुर मे मावे री कचौंडी, बीकानेर मे रसगुल्ला,नागौंर मे मालपुवा,किशनगढ मे पेठा,मेड्ता मे दूध पेडा, लूणी मे केशनबाटी, पाली मे गूंजा,नावा मे गूंद रा पापड , सांभर री फ़ीणी ,खारचीरी राबडी व खुनसुना री जलेबी लाजवाब मानीजे हैं। बीकानेरी भूजिया,जोधपुरी मिर्ची बडा,दाल मोठ,कोफ़्ता व शाही समोसा प्रसिद्ध हैं।राजस्थान रे प्रमुख खान पान मे दाल बाटी औंर चूरमो प्रसिद्ध हैं। ओ खाणे मे बहोत स्वाद होवे हैं।
गरीब औंर समृद्ध लोगो रे भोजन मे बहोत अन्तर हैं। समृद्ध लोग बहोत तरह री सब्जियो सु सुगंधित रसो,सुखा मेवा औंर फ़ीणी ,घेवर औंर खाजा जिसी मिठाईया ,नारियल चावल औंर गेंहू सू वणियोडा कई तरह रा व्यज्ंान,दाल,औंर अचार रो उपयोग करिजे हैं।शादी विवाह रे अवसर ऊपर लपसी,सीरो,औंर लाडू बणाई जे हैं।शादी रे अवसर ऊपर गंगाजल,इलायची औंर कपूर ,लौंंग रो सेवन करिजे हैं ।गरीबो मे बाजरे री रोटी रो प्रचलन हैं।


जोधपुर रा मिर्ची बड़ा



बरखा रो मौसम अर बात चटपटो खावा री व्‍है तो आपां राजस्‍थान रा मिर्चीबड़ा ने कदैही नीं भूल सकां। आओ आज आंपा सिखा कै किस तरह बणै है, जोधपुरी मिर्ची बड़ा।
सामग्री
भरावन रै लिए-
3 बड़े उबळिया मैश किया आलू,
1-1 छोटा चम्मच अदरक व हरी मिर्च पेस्ट,
डेढ़-डेढ़ छोटा चम्मच नमक व पिसी लाल मिर्च व शक्कर,
1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर,
1-1 छोटा चम्मच भुना जीरा व धनिया पाउडर,
1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला,
2 छोटे चम्मच अमचुर पाउडर,
1 बड़ा चम्मच तेल।

छौंक रै लिए-
स्वादानुसार हींग व राई, 8-10 मोटी लम्बी हरी मिर्च।

कवर रै लिए-
2 कटोरी मोटो बेसन,
1/4 छोटा चम्मच खावा रो सोडो,
1 छोटा चम्मच नमक और आवश्यकतानुसार तेल।

विधि :
कड़ाही में तेल गर्म करें। इणमें राई-हींग डाल’र चटकावै। अबै अदरक व हरी मिर्च डाल’र भून लें। इणमें मैश किया आलू और संगळा शेष मसाला डाल’र आच्छी तरह भून लें। त्‍यार भरावन नै ठंडो व्‍हैवा दें।
हरी मिर्च में लम्बाई में चीरो लगा’र बीज निकाल लें अर नमक लगाकर 10-15 मिनट रै लिए रख दें। फैर सूखे कपड़े सूं पोछ’र भरावन भर दें। बेसन में नमक, खावा रो सोडो और आवश्यकतानुसार पाणी डाल’र घोल त्‍यार करें। भरी हुई मिर्च नैं ण घोल में डुबो’र गर्म तेल में मध्यम आंच पै तल लें। इमली री चटनी रै साथै गर्मा-गर्म मिर्ची बड़े सर्व करें



तिल रा लड्डू


तिल सूं बण्‍या व्‍यंजन गर्मी अर ऊर्जा दोई देवै हैं, जिणरी जनवरी री ठंड रै मौसम माय घणी आवश्यकता होवै है। तिल अर गुड़ नैं मिलार बणाया गया लड्डू मकर संक्रांति माथै अवश्य बणाया जावै हैं। आओ आज आपां तिल गुड रा लड्डू बणावणा सीखां।
आवश्यक सामग्री:
तिल - 500 ग्राम
गुड़ - 500 ग्राम
घी - 2 छोटी चम्मच
विधी :
तिल नैं आच्छी तरह साफ कर लो और भारी तले री कढ़ाई माय आग माथै रखर लगातार चमचे सूं चलाता थका, हल्के भूरा होवा तक भून लो। भुने तिल सूं आधा तिल हल्का सा कूट लो या मिक्सी सूं हल्का सा चलार दरदरा कर लो। साबुत अर कुट्या तिल मिला दो। गुड़ नैं कढ़ाई माय एक चम्मच घी डालर गरम कर लो। गुड़ पिघलवा माथै आग बन्द कर दो। अबे पिघळिया गुड़ माय तिल डालर आच्छी तरह मिलालो। गुड़ तिल रै लड्डू बणवा रो मिश्रण तैयार है। हाथ नैं घी लगार चिकणा कर लो, मिश्रण सूं थोड़ो थोड़ो मिश्रण उठार गोल लड्डू बणालो। लड्डू गरम मिश्रण सूं ही बणाणा पड़ै हैं, मिश्रण ठंडो होवा पे जम जावौ है अर लड्डू बणाणो मुश्किल हो जावै है। अणा लड्डू नैं आप तुरंत भी खा सको हो अर तैयार लड्डू नैं 4-5 घंटे खुली हवा माय छोड़र खुश्क होवा रै बाद आप वणानैं एअर टाइट कन्टेनर माय भरर 3 महिने तक खा सको हो।



राजस्‍थानी मावा मालपुआ


मालपुआ राजस्‍थानी घरा माय बणवा वाळौ एक अस्‍यौ पकवान है, जो बरखा रै दिनां माय बणायौ जावै है। इणरै अलावा हरियाळी अमावस्‍या माथै अठै पारम्परिक रूप सूं मालपुआ अर खीर बणाया जावै हैं। साधारण मालपुआ बणावा रै लिये आटा नैं दूध या दही में घोळ्यौ जावै है अर इलाइची मिला’र मालपुआ तल लिये जावै हैं, अणा मालपुआं नैं खीर रै साथै खाया जावै है। पण राजस्थान में दूध, मावौ अर मैदो मिला’र मावा मालपुआ बणाया जावै हैं। अणा मालपुआ नै तलवा रै बाद चाशनी में डुबाया जावै है। तो आऔ आज आपां राजस्थानी मावा रा मालपुआ बणावां।
आवश्यक सामग्री
दूध - 2 कप
मावा या खोया - 200 ग्राम ( 1 कप ) कद्दू कस कियौ थकों
मैदा - 100 ग्राम (1 कप)
चीनी - 300 ग्राम( 1 1/2 कप)
केसर - 20 - 25 टुकड़े (मन चावै तो)
घी - तलने के लिये
छोटी इलाइची - 3-4 (बारीक पीसी)
पिस्ते - 10-12 (बारीक कतरी)
दूध नैं हल्कौ गरम कर लौ। मावा नैं कद्दूकस कर’र एक कप दूध में डाल दो। आच्छी तरह एक दम मिलवा तक फैटो। फैर मैदा डाल’र आच्छी तरह सूं मिला लो (घोल में गुठलियां नीं रेणी चावै)। बच्‍यौ दूध थोड़ा थोड़ा डालो अर घोल नैं आच्छी तरह फैट’र जलेबी बणावा जस्‍यौ घोल त्‍यार कर लो। मालपूआ बणावा रौ घोल त्‍यार है। घोल नैं 10 मिंट रै लिये ढाक’र रख दो।
चाशनी बणाएं:
चीनी री मात्रा रै आधा सूं थोड़ा वत्‍तौ पाणी (1 1/2 कप चीनी माय 1 कप पाणी) न्‍हाक’र एक तार री पतली चाशनी बणा लें। मालपुआ डालवा रै लिए चाशनी त्‍यार है। चाशनी में केसर डाल’र मिला दें।
यूं बणावै मालपुआ:
चौड़ी कढाई जो उंडी कम व्‍है, विमें घी न्‍हाक’र गरम करे। आपणै मन पसन्द आकार रा मालपूआ बणावा रै लिय, 1 मालपूआ रै लिये, 1 चमचो या आधो चमचा घोल, गरम तेल में डालें। कढ़ाई रै आकार रै अनुसार 2 - 3-4 मालपुआ डाल देवै। मंधरै आंच पै मालपूआ तळ ले। हळका भुरा व्‍हैवा पै पलटे, दूजी ओर भी हळका भूरा व्‍हैवा दे। मालपूआ निकाल’र कणी रख दे। संगळा मालपुआ त्‍यार व्‍या पछे चाशनी में डुबौ दे। 5 मिंट बाद मालपूआ चाशनी सूं निकाळ’र बारीक कट्या पिस्ता न्‍हाक’र सजावै। गरमा’गरम या ठंडा मालपुआ खीर या रबड़ी रै लारै जिमो अर जिमावौ और म्‍हानै बतावौ कै कस्‍याक लागा आपनै राजस्‍थानी मावा मालपुआ।मालपुआ।
बाजरे

बाजरे रौ खिचड़ो -






बाजरे रौ खिचड़ो घणौ स्वाद होवै है। यो राजस्‍थान रा मारवाड़ प्रांत माय ज्‍यादा बणायो जावै है। क्‍यूंकै बाजरा री तासिर गर्म होवै है इणलिये यो ज्‍यादातर सर्दी रै मौसम माय ही बणायो जावै है। पण आप चावो तो यदाकदा इणनैं चावल री खिचड़ी रै विकल्प रै रूप माय बारहों महीना बणा सको हो। तो आओ बाजरे रो खिचड़ो बणावा।
आवश्यक सामग्री:
बाजरो - 200 ग्राम
मूंग री दाल - 150 ग्राम
घी या तेल - 2 टेबल स्पून
हींग - 1 चुटकी
जीरा - 1 छोटी चम्मच
हरी मिर्च - 2 (बारीक कतरी)
अदरक - 1 इंच लंबो टुकड़ो (बारीक कतरियो)
हल्दी पाउडर - आधी छोटी चम्मच
हरी मटर रा दाणा - 1 छोटी कटोरी ( चाहें तो)
नमक - स्वादानुसार
हरा धणिया - 1 टेबल स्पून
विधी :
बाजरे नैं साफ कर लो। पछै थोड़ो सो पाणी न्‍हाक’र विणनैं गीलो करलो और खरल माय न्‍हाकर अतरो कूटो कै बाजरे री संगळी भूसी निकळ जावै। भूसी नैं अलग करर बाजरे नैं धो लो। कूकर माय घी या तेल गर्म करर और उण माय हींग-जीरा न्‍हाकर भून लो। उणरै पछै उण माय हरी मिर्च, अदरक, हल्दी पाउडर व मटर रा दाणा न्‍हाकर 2 मिनट तक भूनो और फिर उण माय बाजरे री मिगी न्‍हाकर 2-3 मिनट तक चमचे सूं चलार फैर भून लो।
अबै कूकर माय दाल और बाजरे री मात्रा रो चार गुणा पाणी न्‍हाकर कूकर नैं बंद कर दो और एक सीटी आवा रै पछै 5 मिनट तक धीमी गैस माथै पका लो।
बाजरे रो खिचड़ो त्‍यार है। खिचड़ा नैं हरे धणिया सूं सजार दही, अचार या चटनी रै साथै जिमो अर जिमावों।
चूरमे रा लाड्डू


राखी सूं ठीक पेल्‍या आवा वाळा रविवार नै राजस्‍थान में फूली रो त्‍योहार मनावै। इण त्‍योहार माथै अठे चुरमा रा लाड्डू बणाया जावै। आओ आज आपां सीखा राजस्‍थानी चुरमा रा लाड्डू।
सामग्री :
2 कटोरी गेहूं रो आटो
1 कटोरी गोळ (गुड़)
1, 1 / 2 कटोरी घी
1 / 2 चम्मच इलायची पावडर
2 -4 चम्मच कट्या थका पिस्ता अर बादाम
२- 4 चम्मच खोपरो बारीक़ कट्यो
चांदी रो वर्क , इलायची और पिस्ता पाउडर सजावट रै लिए
विधी :
सबसूं पैल्‍या आटा में थोड़ा घी रो मोयन दे अर उणमे थोड़ो गरम पाणी न्‍हाक’र 15 -20 मिनट रख दे| फैर मोटी मोटी बाटिया बणा’र सेक ले। जद सिक जावै तो दरदरो पीस ले। पिस्‍या मिश्रण में बादाम, पिस्‍ता, खोपरा, घी अर गुड़ आच्‍छी तरह सूं मिला’र लाडडू बांध ले। फेर वणानैं चांदी रै वर्क और इलायची , पिस्ता पाउडर सूं सजा दे।

वीर तेजाजी महाराज


बिरखा रूत सरू हुवतां ई राजस्थान रै गामां रौ वातावरण 'तैजे' री टेर सूं गूंजण लागै। हरेक करसौ आपरै खेत मांय 'तेजा टेर' रै साथै ई बुवाई सरू करै। जाट जाति में पेैदा हुया तेजाजी गोगाजी री दाई सांपां रै देवता रै रूप में राजस्थान में पूज्या जावै। इण रूप में वां रै पूजीजणा रै लारै अेक घटना रैयी है वां रै ई जीवण री।
राजस्थान रै लोक-देवतावां में तेजाजी री ई ठावी ठौड़ है। इणां री जनम-तिथि रै संबंध में कोई समसामयिक साक्ष्य उपलब्ध नीं है, पण इणां रै वंश रै भाटां री बहियां देखण सूं पतौ चालै के इणां रौ जनम मारवाड़ रै नागौर परगनै रे खड़नाल नाम रै गाम में जाट जाति रै धोल्या गौत्र में वि. सं. 1130 री माघ सुदी 14 नै बिस्पतवार (1074) रे दिन हुयौ हौ। इणां रेै पिता रौ नाम ताहडजी अर माता रौ नाम रामकुंवरी हौ। कैयौ जावै के पेमल इणां री छेहली पत्नी ही अर इणसूं पैली इणां रा पांच व्याव हुय चुक्या हा।
गोगाजी री दाई तेजाजी ई आपरौ जीवण गायां री रक्षा में लगाया दियौ हौ। लोकगीतां सू पतौ चालै के जद अै आपरी पत्नी पेमल नै लेवण सारू पनेर गयोड़ा हा, उणी बगत मेर लोग लाछा गूजरी री गायां चोरनै लेयग्या। गूजरां री प्रार्थना माथै तेजाजी मेरां रौ लारौ कर्यौ अर कठण संघर्षां रे बाद गायां नै छुडावण में सफलता प्राप्त करी। पण इण संघर्ष में अै अणूंता ई घायल हुयग्या, जिणसूं अै जमीन माथै हेठा पड़ग्या अर इणरै बाद सरप रै काटण री वजै सूं इणां रौ देहांत हुयग्यौ। इणां रौ देहांत किशनगढ रै त्हैत आयै सुरसरा गाम में हुयौ हौ। इणां रे लारै इणां री पत्नी सती हुई। तेजाजी रै बारै में भाट भैरू (डेगाणा) री बही मुजब तेजाजी रौ देहांत वि. सं. 1160 री माघ बदी 4 नै हुयौ हौ जद के जनसाधारण में इणां रौ ेहांत दिन भादवा सुदी 1 प्रचलित है।
तेजाजी नै सरप रै काटण रे बाबत केई लोकगाथावां मिलै। अेक गाथा मुजब जद तेजाजी आपरै सासरै जाय रैया हा, तौ रस्तै मेें आं अेक सरप नै बलण सूं बचाय लियौ, पण इणां री इण कोसिस रै दरम्यान उणरी सरपणी बल चुकी ही। सो बचियोड़ौ सरप क्रोध में पागल हुयग्यौ अर तेजाजी नै डसण लाग्यौ। तद तेजाजी उणनै रोकता थकां वचन दियौ के - "सासरै जाय'र म्हैं पाछौ थारै कनै आवूं, तद थूं म्हनै डस लीजै।" सासरै गयां इणां नै अचाणचक गायां छुडावण सारू मेरां रै लारै जावणौ पड्यौ। मेरां रै साथे हुयै संघर्ष में अै अणूंता ई घायल हुयग्या हा, तौ ई आपरै वचन निभावण सारू अै उण सरप कनै पूग्या। तद इणांने देख'र सरप कैयौ के - " थांरौ तो सगलौ सरीर ई घावां सूं भर्यौ पड्यौ है, म्हैं डसूं ई तौ कठै डसूं?" इण बात माथै तेजाजी आपरी जीभ निकाली अर सरप इणां री जीभ नै डस लियौ। दूजै कानी लोकगाथा मुजब तेजाजी जद गायां चरावण नै जाया करता हा, तद अेक गाय अलग हुय'र अेक बिल रै कनै जावती परी ही, जठै अेक सरप निकल'र गाय रौ दूध पीय जावतौ हौ। आ बात ठा पड़ियां तेजाजी सरप नै नित दूध पावण रौ वादौ कर्यौ। पण, किणी वजै सूं अेक दिन अै उणने दूध पावणौ भूलग्या। इण बात माथै सरप रीस में झालौझाल हुय'र इणां नै डसणौ चायौ। तद तेजाजी सासरै जाय'र उठै सूं बावड़ियां खुदौखुद नै डसावण रौ वायदौ कर्यौ। जद तेजाजी सासरै सूं घायल हुयोड़ा आय'र उण जगै पूग्या, तौ सरप तेजाजी रौ सारौ सरीर घायल देख'र जीभ माथै डस लियौ। तीसरी लोकघाथा मुजबमेरां रै साथै हुयै संघर्ष में वै अणूंता ई घायल हुयग्या हा, सो वै उठै ई हेठा पड़ग्या। उण बगत उठै सरप बैठ्यौ हौ जिकौ अजेज तेजाजी री जीभ माथै काट खायौ।खायौ।


तेजाजी रे कर्यौडै शौर्यपूर्ण कृत्य, त्याग, वचन-पालणा अर गौ-रक्षा ई इणां नै देवत्व प्रदान कर्यौ। सरू में इणांरे मिरतु-स्थल सुरसरा में इणां रौ अेक मिंदर बणवाईज्यौ, जठै अेक पशु मैलौ लाग्या करतौ हौ। पण वि. सं. 1791 परवाणै सन् 1734 ई. में जोधपुर-महाराजा अभयसिंह रै बगत परबतसर रौ हाकिम उठै सूं तेजाजी री मूरती परबतसर लेय आयौ। तद सूं परबतसर तेजाजी रौ खास स्थान बणग्यौ है। परबतसर में भादवा सुदी 5 सूं 15 तांई अेक विसाल पशु-मैलौ लागै, जिणमें बौत ई बडी संख्या में दूर-दूर रै स्थानां रा सैकडूं वौपारी अर दरसणारथी अेकठ हुवै। तेजाजी रा दूजा खास-खास मेला इणां री जनमभूमि खड़नाल, सुरसरा अर ब्यावर में लागै, जठै इणां रा मिंदर बणियोड़ा है। किशनगढ़, बूंदी, अजमेर इत्याद भूतपूर्व रियासतां में ई केई स्थानां माथै तेजाजी रा मिंदर है। वियां राजस्थान रै अमूमन हर गाम में इणां रा देवरा बणियोड़ा है, जिणां सूं इणां री लोकप्रियता आंकी जाय सकै। आं देवरां रै त्हैत तेजाजी री मूरती गाम रै अेकाध चबूतरै माथै प्रतिष्ठित करीजै, जिकी हाथ में तलवार लियोड़ा घोडै़ माथै असवार रै रूप में हुवै जिणां री जीभ नै सांप डसतौ थकौ दिखायोड़ौ हुवै, कनै ई इणां री पत्नी ई ऊभी हुवै।
राजस्थान में भादवा सुदी 10 नै तेजाजी रौ पूजन हुवै। इण दिन धणकारा लोग तेजाजी रौ ब्यावलौ बंचवावै तौ केई इणां री कथा-वाचन रौ आयोजन करवावै। कठै-कठै ई इणां री जीवण-लीला री व्याख्या में ख्याल ई खेल्या जावै, जिणनै देखण सारू ब डी भारी संख्या में गाम रा लोग भेला हुवै। जाटां में तेजाजी रा भगत बेसी है। अमूमन जाट गलै मांय चांदी रौ अेक ताबीज पैर्यां राखै, जिण माथै तेजाजी अश्वारोही (घुड़सवार) जोद्धा रै रूप में हाथ में नागी तरवार लियोड़ा अर अेक सरप उणां री जीभ नै डसतौ थकौ अंकित कर्योड़ौ हुवै।
राजस्थान में अै ई गोगाजी री दाई सरपां रेै देवता रै रूप में पूज्या जावै। राजस्थान री गांवेड़ी जनता रौ अैड़ौ विसवास है के जे सरप रै डस्योड़ै मिनख रै जीवणै पग में तेजाजी री तांती (डोरी) बांध दी जावै, तौ उणने ज्हैर नीं चढ़ै। बाद में, उण मिनख नै तेाजी रै स्थान माथै ले जायौ जावै अर विधिपूर्वक पूजा रै उपरांयत वा तांती काट दी जावै। मिनखां रै अलावा सरपां रै काट्योडै़ पशुवां रै ई आ तांती बांधीजै।
तेजाजी नै लेय'र राजस्थान में अणमाप लोक साहित्य रौ निरमाण हुयौ है। जन साधारण में अर कास करनै करसां में तेजाजी रै साहसिक, दृढप्रतिज्ञ अर सेवाभावी जीवण री गुणावली रै साथै-साथै इणां रै घरू जीवण संबंध घटनावां री गाथा ई हुवै जिकी ठीक करसां रै अनुरूप हुवै। सो असाढ़, सावण अर भादवै रै महीनै में गामां रौ वातावरण तेजाजी रै गीतां सूं गूंजतौ रैवै। हरेक करसौ 'तेजा टेर' रै साथै बुवाई सरू करै, क्यूं कै वौ अैड़ौ करणौ आपरी भावी फसल सारू शुभ समझै। इणरै अलावा उणां रौ जीवण ई तेजाजी रै जीवण रै समान ई है, क्यूं कै ऊणां ने ई वां ई परिस्थितियां सूं सामनौ करणौ पड़ै जिणां सूं तेजाजी ई कर्यौ हौ। सो आं गीतां सूं करसां नै आपरै लौकिक जीवण रे कार्यकलापां मैं बरौबर प्रेरणा मिलती रैवै। लुगायां रै गावण वालै तेजाजी रै गीतां में सूं अेक गीत में तेजाजी सूं कालै नाग रौ ज्हैर उतारण सारू अरज करीजी है। अेक दूजै गीत सूं ठा पड़ै के तेजाजी रै नाम सूं ई ज्हैर शांत हुय जावै। इण भांत आं न्यारै-न्यारै गीतां सूं तेजाजी रै प्रति राजस्थानी लोक हिरदै मांय व्याप्योड़ी श्रद्धा-भावना रौ पतौ पड़ै।
तेजाजी रै चमत्कारां री इधकाई रौ वरणाव अनेकूं लोक गीतां मुजब उल्लेखजोग है। इण गीतां में तेजाजी अर नाग रै बतलावण री छिब देखणजोग-


डोर तौ लागी छै रै, श्री भगवान सूं,
झूठो सब संसार रै, बाबा बासग।
झूठी तौ काया रै, साचौ रामजी,
सत पै सांी खड़ौ छै रै, बाबा बासग।।
तैजाजी रै इण भगती-उद्गारां रौ पडूत्तर
देवता थका नागराज कैवै-
सत पै ही मरेगौ रै, लड़कौ जाट को,
धन-धन थारा सत नै रै, तेजल बेटा।
घनयक तौ छै जी रै थारा ग्यान नै,
घर-घर में पुजावा दूं रै, तेजल थनैं।।
लोक जीवण में अर खास र' कृषक समाज में तेजाजी री अणूंती ई धावना रैयी है खेतां मांय हल चलावतै बगत किरसाण तेजा टेर सूं काम करणौ सरू करै-
कलजुग में तौ दोय फूलड़ा बडा जी,
अेक सूरज दूजौ चांद औ।
वासग रा औ तेजाजी थे बडा जी,
सूरज री करिणां तपै जी,
चंदा री निरमल रात औ।।
इंदर तौ बरसावै जी,
धरती तौ निपजावै धान हौ।
मायड़ जण जलम दीना,
बाप लडाया छै लाड जी।।

{जय बोलो तेजल अवतारी की जय हो||}


राजस्थानी पहेलियां


1. सावण में सुंसाट करै,
पगां चलावै कार
इ आडी रो अरथ बताद्‌यो,
रिपिया द्‌यूं हजार
2. छोटी सी पिदकी
पिद-पिद करती,
सारै दिन चरती
लेडा नहीं करती ।
3. भूरती भैस टिब्बे पर बयाई
सो सिंगांळी पाडी ल्याई
जामतांई मारण नै आई।
4. अेक सींग गी गा
घालै बीतौ खा।
5. हरी घणी लाम्बी घणी
सुअै जिस्यौ रंग,
ग्यारह देवर छोडनै,
चाली जेठ रे संग
6. धोळी घोडी झबरौ पूंछ
नीं आवै तो बापू नै पूछ।
7. रूघो चालै रग-मग
तीन माथा दस पग
8. हरी टोपी लाल दुशाला,
पेट में मोत्या री माळा।
9. धोळौ-धोळौ धपलौ
मूळी ग़ो सो कपलो।
10. आडूंक आडूं
गोडै सूदौ गाडूं।
11. आडी चालूं टेडी चालूं
चालूं कमर कस
ई आडी ऱौ अरथ बतादयौ
रिपिया देस्यूं दस।
12. आंको-बांको आंटियो,
आंको म्हांको नाम,
ई आडी गो अरथ बताद्तौ,
नीं तो छोडो गाम।
कीं आड्‌यां दूजी तरियां री है। इणां सू टाबरा रौ जठै मानसिक विकास होंवतो बठैई बै कविता री परम्परा नै भी आगै बंधावता हां।
13. सोनै गी कढावणी घडद्‌यौ...
सासू-भू कमावणी
सोनै गी घडी कढावणि।
14. भोजासर रै कुअै ऊपर सूं कोई मतीरो कुदाद्‌यौै...
आकां रै लाग्या अकडोडिया
फोगां रै लाग्यौ जीरो
भोजासर रै कुअै ऊपर कूदग्यौ मतीरो।
15. कुअै में सूं मोबी बकरो काडदयौै...
थाळी भरी मोतियां, कोठो भरयौ सिंदूर
निकळ म्हारा मोबी बकरा, अेवड निसरयौ दूर
16. कोठी नै परलै बास पुगादयौ
हाथ में पुराणी पग में रास
चाल म्हारी कोठी परले बास
17. अम्बर सूं गाडौ रूडादयौै...
भूरती भैस भराडा पाडा
अम्बर परिया रूडग्या गाडा।
18. हाथी सूं लादौ मंगादयौ ...
छिणमिण छिणमिण छांट पडै
गोडै सूदौ कादौ
तावडियै री चूंचाड में
हाथी ल्यावै लादौ।
19. सुसियै ने राख में लिटाद्‌यौ...
आधी रोटी काख में
सुसियौ लिटयौ राख में
20. कुअै पर जान जिमाद्‌यौ...
म्हारै कान थारै कान
कुअै ऊपर जिमै जान
21. भूरती भैंस दुहद्‌यौ...
अगड लडै दो बगड लडै
पेडै चढता सर्प लडै
सर्पा रै मुंह में सुई
अर भूरती भैंस दुई।
22. बागड री रेल मगाद्‌यौ ...
अगड लडै दो बगड लडै
पेडै चढता सर्प लडै
सर्पा रै मुंह में सुई
अर भूरती भैंस दुई।
दुहतां-दुहतां आया झाग
बै दिखै बाळू रा बाग
बागां में अेरौ-घेरौ
अर बौ दिखै डाकण रो डेरौ
डाकण रै डेरै में करुओ तेल
बा आई बागड गी रेल।
23. हाथी गो पोड पीळौ करद्‌यौ...
बाटकियै में सीरौ
हाथी गो पोड पीळौ।

उत्तर : 1. भूंडियो 2. दांती 3. भरूंट 4. चाकी 5. सांगरी 6. मूळी 7. दो बादळां लारै किसान 8. लाल मिर्च 9. चांदी आळौ रिपियो 10. खूंटो 11. भुवारी 12. बेरडी रो बांकियो कांटो|




१. सासू गी तो सासू, सुसरै गी माता
सागी खसम री दादी, अैई म्हारा नाता।
2. छाती तो खाती घडी, पेट घडयो सुनार
सिर तो कुम्हार घडयो, टोपी घडी लुहार।
3. साळै गौ साळौ, बींगौ डावौ कान काळौ
बींगै भाणजै री भुआ, तैरै के लागी?
4. गोगो बैठयौ उरलै बास,
पग पसारया परलै बास।
5. आडयौ रे आडयौ,
गोडै सुदौ गाडयौ
चोटी पकडग़े काडयौ।
1. सूकी नैर में मंगलियौ तिरायदौ...
पिण्डी पाटी लोही झरै
सूकी नैर में मंगलियौ तिरै
2. बिल्ली नै बूंटियौ परादयौ...
चूल्है लारै चूंटीयौ
बिल्ली पैरै बूंटीयौ
3. तारा ने राबडी प्यादे...
छज्जे ऊपर छाबडी
तारा पीयै राबडी
4. सोनै री कीकर काट दे...
कसियौ-कुहाडियौ पिपाटी
सोनै री कीकर म्हूं काटी।

उत्तर : 1. दादेर सासू 2. होको (कळी) 3. घरआळी 4. दियौ, चनणौ 5. बूरेडौ मतीरियौ

मूँगफली

मूँगफली है सेहत का खजाना


भारत में इसे 'गरीबों का बादाम' के नाम से भी जाना जाता है।एक बादाम जाड़े में जितना फायदा देता है मूंगफली भी सेहत के लिहाज से उतना फायदा देती है। मूंगफली में सभी पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं।
मूंगफलीमें मौजूद पोषक तत्वों की भरमार होती है । करीब 100 ग्राम मूंगफली में आपको 567 कैलोरी, 49 ग्राम फैट्स जिसमें सात ग्राम सैचुरेटेड 40 ग्राम अनसैचुरेटेड फैट्स, जीरो कोलेस्ट्रॉल, सोडियम 18 मिलीग्राम, पोटैशियम 18 मिलीग्राम, कार्बोहाइड्रेट, फोलेट, विटामिन्स, प्रोटीन, फाइबर आदि अच्छी मात्रा में हैं।
यह वनस्पतिक प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत भी हैं। एक अंडे की कीमत में जितनी मूंगफली आती है, उसमें इतना प्रोटीन होता है जितना दूध और अंडे में भी नहीं होता है। 250 ग्राम मूँगफली के मक्खन से 300 ग्राम पनीर, 2 लीटर दूध या 15 अंडों के बराबर ऊर्जा की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है।
फर्टिलिटी बढ़ती है। मूंगफली में फोलेट अच्छी मात्रा में है। कई शोधों में माना जा चुका है कि जो महिलाओं 700 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड वाली डाइट का सेवन करती हैं उनके गर्भवती होने व गर्भस्थ शिशुओं की सेहत में 70 प्रतिशत तक का फायदा होता है।
ब्लड शुगर पर नियंत्रण एक चौथाई कप मूंगफली के सेवन से शरीर को 35 प्रतिशत तक मैगनीज मिलता है जो फैट्स पर नियंत्रण और मेटाबॉलिज्म ठीक रखता है। इसका नियमित सेवन खून में शुगर की मात्रा संतुलित रखता है।
मूंगफली के खाने से दूध, बादाम और घी की पूर्ति हो जाती है।इसे खाने से कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है। कोलेस्ट्रॉल की मात्रा में 5.1 फीसदी की कमी आती है। इसके अलावा कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्राल (एलडीएलसी) की मात्रा भी 7.4 फीसदी घटती है। एक सर्वे के मुताबिक जिन लोगों के रक्त में ट्राइग्लाइसेराइड का लेवल अधिक होता है, वे अगर मूंगफली खाएं, तो उनके ब्लड के लिपिड लेवल में ट्राइग्लाइसेराइड का लेवल 10 फीसदी कम हो जाता है मूँगफली शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में ज्यादा लाभदायक है। यह खांसी में उपयोगी है व मेदे और फेफड़े को बल देती है।
इसे भोजन के साथ सब्जी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूंगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है।
वजन घटाने में फायदेमंद-
शोधों में मानी जा चुका है कि जो लोग रोज मूंगफली का सेवन करते हैं उन्हें वजन घटाने में दूसरों की अपेक्षा दोगुनी आसानी होती है।
मूँगफली को जाड़े के अलावा हर मौसम मे खा सकते है ये रसोई मे निम्न प्रकार से प्रयोग मे लाई जाती है
1. मूँगफली को पुलाव, पोहे, ओर खिचड़ी मे भून कर प्रयोग कर सकते है।
2.मूँगफली की चटनी - सामग्री :
मूंगफली के दाने भूने और छिले हुए - 1 कटोरी

, 2-4 हरी मिर्च, 1 टे.स्पून तेल, 1/4 टी स्पून राई पाउडर, नमक स्वादानुसार।
विधि -मूंगफली के दाने मिक्सर जार में डाल दीजिये, आधा कप पानी डाल दीजिये इसमें नमक और हरी मिर्च डाल कर बारीक पीस लीजिये. चटनी को प्याले में निकालिये अगर यह आपको बहुत अधिक गाढ़ी लगे तो थोड़ा पानी और मिला दीजिये, अब इसमें नीबू का रस निकाल कर मिला दीजिये.
गैस पर छोटी कढ़ाई गरम कीजिये और तेल डालिये, गरम तेल में राई डालिये. राई कड़कड़ाहट के साथ भुन जायेगी. गैस बन्द कर दीजिये, 1-2 पिंच लाल मिर्च पाउडर डालिये और तड़के को चटनी में डाल दीजिये. चम्मच से एक दो बार चला दीजिये. मूँगफली की चटनी तैयार है.
3. मूंगफली की चिक्की - सामग्री
मूंगफली के दाने- 500 ग्राम
गुड़ या चीनी- 500 ग्राम
घी- 2 छोटी चम्मच
विधि -मूंगफली के दानों को घर में भूनना चाहती है, तो मूंगफली के दानों में एक छोटी चम्मच पानी डालकर मिलाये और 2-3 मिनिट बाद माइक्रोवेव में 5 मिनिट के लिये भून लें. देख लें कि मूगफली के दाने भून गये हैं, अगर नहीं तो और 2 मिनिट के लिये माइक्रोवेव करें. ठंडा होने पर छिलका उतार लें.अगर माक्रोवेव नहीं करना चाहते तो एक कढाई ले और गर्म करे और उसमे मूंगफली दाने को डाले औरमूंगफली के दाने को भुन ले , और उनका छिलका निकाल लीजिये, कढ़ाई में दो छोटी चम्मच घी डाल कर गैस पर रखें और कर गरम करें.
गुड़ तोड़ कर कढ़ाई में डालें, गुड़ को चलाते जायं. (मीडियम गैस पर पकायें) गुड़ पिघलने लगता है
आप उसे लगातार चलाते हुये पकायें, जब सारा गुड़ पिघल जाने के बाद चाशनी को 4-5 मिनिट तक और पकायें, चाशनी तैयार है.चाशनी में मूंगफली के दाने डालकर अच्छी तरह मिलाइये,
2-3 मिनिट तेज चलाते हुये पकाइये. एक प्लेट में घी लगाकर चिकना कीजिये.
कढ़ाई में बनी हुई चिक्की तुरन्त प्लेट में बेलन की सहायता से फैलाइये. चाकू की सहायता से अपने मन पसन्द आकार में काट लीजिये. और ठंडा होने पर टुकड़ों को अलग अलग कर लीजिये.
मूंगफली की चिक्की तैयार है.

66 सालों में सिर्फ सौ राजस्थानी फिल्में


कछुआ चाल वाली कहावत शायद इसी के लिए बनाई गई थी। क्षेत्रीय सिनेमा की दुनिया में राजस्थानी फिल्में आज बहुत ही सुस्त चाल में चल रही हैं और यह चाल भी ऐसी की 100 का आंकड़ा छूने में 66 वर्ष लग गये। इस बढ़ती उम्र के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि हमारा सिनेमा अब परिपक्व हो गया है। साल-दर-साल बचकानी फिल्में और हर नई फिल्म के साथ दर्शकों की दम तोड़ती उम्मीदें। पहली राजस्थानी फिल्म ‘नजराना’ 1942 में आई थी और अब 2008 में ‘ओढ़ ली चुनरिया रे’ सौवीं फिल्म के रूप में सैंसर सर्टिफिकेट हासिल किया है। हिन्दी, तमिल या तेलुगु में इनसे दुगुनी फिल्में तो एक साल में बन जाती है। इनमें कई फिल्में तो ऐसी होती है जो दुनिया भर में कामयाबी का परचम लहराती है। पर राजस्थानी में अगर जगमोहन मूंधड़ा की फिल्म ‘बवंडर’ को अलग कर दें तो 66 साल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर तो दूर, राष्ट्रीय स्तर की भी कोई फिल्म नहीं बन पाई है। भंवरी देवी प्रकरण 2001 में बनी फिल्म ‘बवंडर’ ने राजस्थानी सिनेमा को न सिर्फ पहली बार विदेशों तक पहुँचाया, बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिबलों में चर्चा और अवार्ड हासिल कर राजस्थान का परचम फहराया है। अभी के इस दौर में भोजपुरी फिल्में देश-विदेशों में जो धुंआधार प्रदर्शन कर रही हैं, वो जगजाहिर है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भोजपुरी सिनेमा ने यह बुलंदी अपने बलबूते हासिल की है, किसी सरकारी सहायता और टैक्स-फ्री की सुविधा के बगैर रविकिशन और मनोज तिवारी जैसे नये अभिनेताओं के जरिये, भोजपुरी भाषा बोलनेवाले दर्शकों के व्यापक समर्थन के दम पर।
भोजपुरी भाषा बोलने वालों की तरह राजस्थानी बोलने वाले इस देश और दुनिया भर में फैले हुए हैं। वे जहां भी रह रहे हैं, वहां वर्षों से अपनी जमीन, जड़ और जुबान से जुड़े हुए हैं। अपने घरों को संस्कारों से सजाकर रखते हैं तथा अपनी कला-संस्कृति से प्यार करते हैं। राजस्थानी में साफ-सुथरा, सुरुचिपूर्ण मनोरंजन देखने-सुनने को मिले, तो उसे भी उतने ही चाव से अपना सकते हैं। पर हिन्दी और दूसरे प्रादेशिक सिनेमा से राजस्थानी सिनेमा इतना पीछे और पिछड़ा है कि लगता है यह दौड़ से ही बाहर हो गया है। पर इच्छाशक्ति, चाह, लगाव और साहस हो तो दर्शकों का ‘सपोर्ट पाकर, टीवी म्यूजिकल शो के प्रतियोगी की तरह फिर इस रेस में शामिल हो सकता है। राजस्थानी गीत-संगीत में रचे-बसे ‘बीणा’ के अलबमों को देश और दुनिया में जितनी लोकप्रियता मिली है, उससे ही यह बात साबित हो जाती है। राजस्थानी सिनेमा से जुड़े हुए फिल्मकारों को इस बात पर ईमानदार प्रयास करने की जरुरत है।
1942 से 2008 तक बनी हुई क्रमवार राजस्थानी फिल्में
1. नज़राना 2. बाबासा री लाडली 3. नानीबाई कौ मायरौ 4. बाबा रामदेव पीर 5. बाबा रामदेव 6. धणी-लुगाई 7. ढोला-मरवण 8. गणगौर 9.गोपीचंद-भरथरी 10. गोगाजी पीर 11. लाज राखो राणी सती 12. सुपातर बीनणी 13. वीर तेजाजी 14. गणगौर 15. सती सुहागण 16. म्हारी प्यारी चनणा 17. सुहागण रौ सिणगार 18. पिया मिलण री आस 19. चोखौ लागै सासरियौ 20. राम-चनणा 21. सावण री तीज 22. देवराणी-जेठाणी 23. डूंगर रौ भेद 24. नणद-भौजाई 25. थारी म्हारी 26. जय बाबा रामदेव 27. धरम भाई 28. बिकाऊ टोरड़ौ/अच्छायौ जायौ गीगलौ 29. करमा बाई 30. नानीबाई को मायरौ 31. बाई चाली सासरिये 32. ढोला-मारु 33. रामायण 34. जोग-संजोग/बाई रा भाग 35. बाईसा रा जतन करो 36. सतवादी राजा हरिश्चंन्द्र 37. घर में राज लुगायां कौ 38. रमकूड़ी-झमकूड़ी 39. बेटी राजस्थान री 40. चांदा थारै चांदणे 41. मां म्हनै क्यूं परणाई 42. बीनणी बोट देणनै 43. माटी री आण 44. सुहाग री आस 45. दादोसा री लाडली 46. वारी जाऊं बालाजी 47. भोमली 48. भाई दूज 49. बंधन वचनां रौ 50. मां राखो लाज म्हारी 51. जय करणी माता 52. चूनड़ी 53. लिछमी आई आंगणे 54. बीनणी 55. रामगढ़ की रामली 56. खून रौ टीकौ 57. जाटणी 58. डिग्गीपुरी का राजा 59. बीरा बेगौ आईजै रे 60. गौरी 61. बालम थारी चूनड़ी 62. बेटी हुई पराई रे 63. बाबा रामदेव 64. दूध रौ करज 65. बीनणी होवै तौ इसी 66. बापूजी नै चायै बीनणी 67. माता राणी भटियाणी 68.राधू की लिछमी 69. छम्मक छल्लो 70. लाछा गूजरी 71. जियो म्हारा लाल 72. देव 73. सरूप बाईसा 74. जय नाकोड़ा भैरव 75. सुहाग री मेहंदी 76. छैल छबीली छोरी 77. कोयलड़ी 78. जय सालासर हनुमान 79. गोरी रौ पल्लौ लटकै 80. म्हारी मां संतोषी 81. बवंडर 82. मां राजस्थान री 83. जय जीण माता 84. मेंहदी रच्या हाथ 85. चोखी आई बीनणी 86. ओ जी रे दीवाना 87. मां-बाप नै भूलजो मती 88. खम्मा-खम्मा वीर तेजा 89. लाडकी 90. जय श्री आई माता 91. लाडलौ 92. पराई बेटी 93. प्रीत न जाणै रीत 94. मां थारी ओळू घणी आवै 95. जय मां जोगणिया 96. जय जगन्नाथ 97. कन्हैयो 98. म्हारा श्याम धणी दातार 99. मां भटियाणीसा रौ रातीजोगौ 100. ओढ़ ली चुनरिया

राजस्थानी लोकगीत


1. एक बार आओजी जवाईजी पावणा
एक बार आओजी जवाईजी पावणा
थाने सासूजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना
सासूजी ने मालुम होवे म्हारे भाई आज होयो
म्हारे घरे से मौक्ळो काम सासूजी मने माफ करो...

एक बार आओजी जवाईजी पावणा......
थाने सुसराजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना
सुसराजी ने मालूम होवे बाप म्हारो सेहर गयो
म्हारे घर से लारलो काम
सुसराजी मने माफ करो

एक बार आओजी जवाईजी पावणा......
थाने साळीजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना
साळीजी ने मालुम होवे साढुजी ने भेजू हूँ
म्हारा साढुजी नाचेला सारी रात
साळीजी मने माफ करो

एक बार आओजी जवाईजी पावणा......
थाने बुवाजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना
बुवाजी ने मालुम होवे म्हारे भी बुवाजी आया
बुवासासुजी ने जोडू लंबा लंबा हाथ बुवाजी मने माफ करो

एक बार आओजी जवाईजी पावणा......
थाने लाडीजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना
लाडीजी बुलावे तो लाडोजी भी आवे है
मैं तो जाऊंला सासरिये आज साथिङा मने माफ करो

एक बार आओजी जवाईजी पावणा...........
थाने सासूजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना....
थाने सुसराजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना...
थाने साळीजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना....
थाने बुवाजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना...
थाने लाडीजी बुलावे घर आज जवाई लाड्कना...

2. उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे म्हारा, काळा रे कागला
कद म्हारा पीव्जी घर आवे
कद म्हारा पीव्जी घर आवे , आवे र आवे
कद म्हारा पिव्जी घर आवे

उड़ उड़ रे म्हारा काळा र कागला
कद माहरा पीव्जी घर आवे

खीर खांड रा जीमण जीमाऊँ
सोना री चैंच मंढाऊ कागा
जद म्हारा पिव्जी घर आवे, आवे रे आवे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
म्हारा काळा र कागला
कद माहरा पीव्जी घर आवे

पगला में थारे बांधू रे घुघरा
गला में हार कराऊँ कागा
जद महारा पिव्जी घर आवे

उड़ उड़ रे
महारा काळा रे कागला
कद महारा पिव्जी घर आवे
उड़ उड़ र महारा काला र कागला
कद महरा पिव्जी घर आवे

जो तू उड़ने सुगन बतावे
जनम जनम गुण गाऊँ कागा
जद मारा पिव्जी घर आवे , आवे र आवे
जद म्हारा पिव्जी घर आवे

उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे महारा काळा रे कागला
कद म्हारा पिव्जी घर आवे
उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे

उड़ उड़ रे उड़ उड़ रे म्हारा काळा रे कगला
जद म्हारा पिव्जी घर आवे

रणसी गांव री सच्ची राजस्थानी कहानी


एक बार जब ठाकुर जयसिंह घोड़े पर सवार होकर जोधपुर से रणसी गांव (रणसी गांव यह जोधपुर से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक गांव है) की ओर जा रहे थे तब रास्ते में ठाकुर साहब का घोड़ा उनके साथ-साथ चलने वाले सेवकों से पीछे छूट गया और इतने में रात हो गई।

राजा का घोड़ा काफी थक चुका था और उसे बहुत प्यास लगी थी। रास्ते में एक तालाब को देखकर ठाकुर जयसिंह अपने घोड़े को पानी पिलाने के लिए ले गए। आधी रात का समय था घोड़ा जैसे ही आगे बढ़ा राजा को एक आकृति दिखाई दी जिसने धीरे-धीरे इंसानी शरीर धारण कर लिया। राजा उसे देखकर डर गया, उस प्रेत ने राजा को कहा कि मुझे प्यास लगी है लेकिन श्राप के कारण मैं इस कुएं का पानी नहीं पी सकता। राजा ने उस प्रेत को पानी पिलाया और राजा की दयालुता देखकर प्रेत ने उसे कहा कि वह जो भी मांगेगा वह उसे पूरी कर देगा।
राजा ने प्रेत को कहा कि वह उसके महल में एक बावड़ी का निर्माण करे और उसके राज्य को सुंदर बना दे. भूत ने राजा के आदेश को स्वीकारते हुए कहा कि वो ये कार्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं करेगा, लेकिन दिनभर में जितना भी काम होगा वह रात के समय 100 गुना और बढ़ जाएगा. उस प्रेत ने राजा को यह राज किसी को ना बताने के लिए कहा।
इस घटना के दो दिन बाद ही महल और बावड़ी की इमारतें बनने लगीं. रात में पत्थर ठोंकने की रहस्यमय आवाजें आने लगीं, दिन-प्रतिदिन निर्माण काम तेज गति से बढ़ने लग। लेकिन रानी के जिद करने पर राजा ने यह राज रानी को बता दिया कि आखिर निर्माण इतनी जल्दी कैसे पूरा होता जा रहा है. राजा ने जैसे ही यह राज रानी को बताया सारा काम वहीं रुक गया। बावड़ी भी ज्यों की त्यों ही रह गई. इस घटना के बाद किसी ने भी उस बावड़ी को बनाने की कोशिश नहीं की।

राजस्थानी कहावतां


खाट पड़े ले लीजिये, पीछे देवै न खील।
आं तीन्यां रा एक गुण, बेस्या बैद उकील।

बैस्या, बैद्यराज अर्थात डाक्टर, वकील इन तीनों की एक ही समानता है कि जब आदमी को जरूरत होती है तभी उनको याद करता है। काम हो जाने के बाद वह पलटकर भी इनको नहीं देखने आता।
कहावत का तात्पर्य है -
जब आदमी को काम पड़े उसी वक्त उससे अपना लेन-देन कर लेना चाहिए। -आपणी भासा

गरबै मतना गूजरी, देख मटूकी छाछ।
नव सै हाथी झूंमता, राजा नळ रै द्वार।।

राजा नळ के दरवाजे पर 900 हाथियों का झूंड खड़ा रहता था वह भी समाप्त हो गया। पर तुम अपनी एक हांडी छाछ पर इतराता है।
कहावत का तात्पर्य है -
अपनी संपत्ति पर इतना मत घमंड करो। एक दिन सब समाप्त हो जाता है। -आपणी भासा

ग्यानी सूं ग्यानी मिलै, करै ग्यान री बात।
मूरख सूं मूरख मिलै, कै जूता कै लात।।

इस कहावत का भावार्थ बहुत सरल है। संगत जैसी वैसी करनी। -आपणी भासा

चोदू जात मजूर री, मत करजे करतार।
दांतण करै नै हर भजै, करै उंवार-उंवार।।

मजदूरी करने वाला आदमी न तो कभी ठीक से भजन-किर्तन करता है ना ही ठीक से नहाता-खाता है बस जब उससे बात करो तो बोलता है कि बहुत समय हो गया।
कहावत का तात्पर्य है -
जो अस्त-व्यस्त रहता है उसी के पास समय नहीं रहता। -आपणी भासा

जायो नांव जलम को रैणौ किस विध होय?

जन्म लेने वाले बच्चे को 'जायो' कहा जाता है तो वह अमर कैसे हुआ?
कहावत का तात्पर्य है - एक दिन सबको जाना तय है। जन्म लेने के साथ ही मौत तय निष्चित हो जाती है। -आपणी भासा

ज्यूं-ज्यूं भीजै कामळी, त्यूं-त्यूं भारी होय।

कपास, रुई या कम्बल जैसे-जैसे पानी में भींगती है वह किसी काम के लायक नहीं रह जाती।
कहावत का तात्पर्य है -
जैसे-जैसे आदमी में किसी भी बात का घमंड बढ़ने लगता है वह समाज से कट जाता है।
इस कहावत को कुछ लोग यह अर्थ भी लगाते हैं- जैसे-जैसे धन आने लगता है उस आदमी की कर्द समाज में होने लगती है। -आपणी भासा

 ऊपर थाली नीचै थाली मांय परोसी डेढ सुहाली।
बांटण आली तेरा जणीं, हांते थोड़ी हाले घणीं।।

दो थाली के बीच में खाने की बहुत सारी सुहाली (मैदे या आंटा से बना हुआ खाने का सामान जो छोटी रोटी नूमा होती है जिसे घी या तेल में तल कर बनाया जाता है) जिसे 13 औरतें खाने वाले को बांटती (भोजन परोसना) है परन्तु खाने वाला ललचाई आंखों से उनको देखते ही रह जाते हैं तब उनमें से एक जन कहता है कि 13 जनी सुहाली लेकर केवल हिल रही है पर देती नहीं है।

अर्थात केवल दिखावा है। आडम्बर अधिक है।

आंधे री गफ्फी बोळै रो बटको।
राम छुटावै तो छुटे, नहीं माथों ई पटको।।

आंघे और बहरे आदमी से पिंड छुड़ाना कठिन कार्य है।


आगम चौमासै लूंकड़ी, जै नहीं खोदे गेह।
तो निहचै ही जांणज्यों, नहीं बरसैलो मेह।।

वर्षाकाल के पूर्व लोमड़ी यदि अपनी ‘घुरी’ नहीं खोदे तो निश्चय जानिये कि इस बार वर्षा नहीं होने वाली है।


इस्या ही थे अर इस्या ही थारा सग्गा।
वां के सर टोपी नै, थाकै झग्गा।

संबंधी आपस में एक-दूसरे की इज्जत नहीं उझालते। इसी बात को गांव वाले व्यंग्य करते हुए कहतें हैं कि यदि आप उनकी उतारोगे तो वह भी अपकी इज्जत उतार देगें दोनों के पूरे वस्त्र नहीं है - ‘‘ एक के सर पर टोपी नहीं तो दूसरे ने अंगा नहीं पहना हुआ है।’’


आज म्हारी मंगणी, काल म्हारो ब्याव।
टूट गयी अंगड़ी, रह गया ब्याव।।

जल्दीबाजी में अति उत्साहित हो कर जो कार्य किया जाता है उसमें कोई न कोई बाधा आनी ही है।


कुचां बिना री कामणी, मूंछां बिना जवान।
ऐ तीनूं फीका लगै, बिना सुपारी पान।।

स्त्री के स्तनों का उभार न हो, मर्दों को मूंछें और पान में सूपारी न होने से उसकी सौंदर्यता नहीं रहती।


दियो-लियो आडो आवै।

दिया-लिया या अपना व्यवहार ही समय पर काम आता है।


धण जाय जिण रो ईमान जाए।

जिसका धन चला जाता है उसका ईमान भी चला जाता है।


धन-धन माता राबड़ी जाड़ हालै नै जाबड़ी।
धन आने के बाद आदमी का शरीर हिलना बन्द कर देता है। इसी बात को व्यंग्य करते हुए लिखा गया है कि राबड़ी खाते वक्त दांत और जबड़ा को को कष्ट नहीं करना पड़ता है।


ठाकर गया’र ठग रह्या, रह्या मुलक रा चोर।
बै ठुकराण्यां मर गई, नहीं जणती ठाकर ओर।।

ठाकुर चले गये ठग रह गये, अब देश में चोरों का वास है।
अब वैसी जननी मर चुकी, जो राजपुतों को जन्म देती थी।।
कहावत का तात्पर्य समाज की वर्तमान व्यवस्था पर व्यंग्य करना है। जिसमें देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए कहा जा सकता है कि अब देश के लिए कोई कार्य नहीं करता। सब के सब ठग हो चुके हैं जो देश को चारों तरफ को लूटने में लगे हैं।


टुकरा दे-दे बछड़ा पाळ्या,
सींग हुया जद मारण आया।

मां-बाप बच्चों को बहुत दुलार से पालते हैं परन्तु जब वह बच्चा बड़ा हो जाता है तो मां-बाप को सबसे पहले उसी बच्चे की लात खानी पड़ती है।


जावै तो बरजुं नहीं, रैवै तो आ ठोड़।
हंसां नै सरवर घणा, सरवर हंस करोड़।।

जाने वाले को रोकना नहीं चाहिए, वैसे ही ठहरने वाले को जगह देनी चाहिए। जिस प्रकार हंस को बहुत से सरोवर मिलते हैं वैसे ही सरोवर को भी करोड़ों हंस मिल जाते हैं। अर्थात किसी को भी घमण्ड नहीं करना चाहिए।


जात मनायां पगै पड़ै, कुजात मनायां सिर चढ़ै।

समझदार व्यक्ति को समझाने से वह अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति लड़ पड़ता है।


राजस्थानी शब्दों का हिन्दी अर्थ

आंधे री गफ्फी - अंधे से हाथ, आली - क्रिया स्त्री., आडो - समय पर, इस्या - ऐसे ही, कामणी - स्त्री, कुचां - स्तन, कुजात - मूर्ख या ना समझ, गेह - घर, घणीं, घणा - अधिक, बहुत, जाड़ - दांत, जाबड़ी - जबड़ा, जांणज्यों - जानिये, जणीं - स्त्री, जिण रो - जिसका, जात - समझदार, परोसी - बांटना, बोळै रो बटको - बहरे को समझाना, बरजुं - रोकना मेह - वर्षा, मांय - बीच में, मुलक - देश, डेढ - बहुत सारी, ठोड़ - जगह, तेरा - 13, थे - आप, थारा - आपका, थाकै - आपके, निहचै - निश्चय, लूंकड़ी - लोमड़ी, वां के - उनके, सुहाली - मैदे या आंटा से बना हुआ खाने का सामान जो छोटी रोटी नूमा होती है जिसे घी या तेल में तल कर बनाया जाता है। हांते -देना, हाले - हिलना।

रक्षाबंधन


रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास
की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में
मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी)
या सलूनो भी कहते हैं।
[1] ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार 2012
में रक्षाबन्धन गुरुवार, 2 अगस्त को मनाया गया।
[2]
रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है।
राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे,
रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक
की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई
को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में
छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे
पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है।
कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित
व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने
की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है।
[3] हिन्दुस्तान में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये
एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं।
[4] हिन्दू धर्म के
सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय
कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक
का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा
बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन
का अभीष्ट मन्त्र है।
[क] इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है-
"जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र
राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ,
तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"
अनुष्ठान

मुख्य लेख : रक्षासूत्र

प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ
पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली
या हल्दी , चावल , दीपक , मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के
और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये
पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता
की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई
का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और
सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है,
दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से
न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के
अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ
लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है।
इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद
ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और
खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्व रक्षाबन्धन में
भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्वपूर्ण होता है
और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत
रखने की भी परम्परा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह
यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन
वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज
में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है
कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म , पुराण, इतिहास ,
साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।

आपणो बचपन


जाने कब हम इतने बड़े हो गए

कभी पहली बार स्कूल जाने मे डर लगता था
आज मिलते हे दोस्त बन जाते है
कभी मां-बाप की हर बात सच्ची लगती थी
आज उन्ही को हर पल झूटलाते है.......

परीयो की कहानी की जगह आजकल रात को
फोन पर दोस्त की बात सुनना ज्यादा अच्छा लगता है..........

पहले 1st आने के लिए पूरे साल पढते थे
आज पास होने को तरसते है
कार्टून की जगह अब रीयलटी शो अच्छे लगते है........

कभी छोटी सी चोट लगने पर इतना रोते थे
आज दिल टूट जाता है फिर भी संभल जाते है
पहले दोस्त बस साथ खेलने तक याद रहते थे
आज वो ही दोस्त जान से ज्यादा प्यारे लगते है.......

एक दिन था जब पल मे लडना पल मे मनना था रोज का काम
आज जो एक बार जुदा हुए तो फिर घेहरे रिश्ते तक खो जाते है.......

सच मे जिन्दगी ने बहुत कुछ सिखा दिया
जाने कब हमे इतना बड़ा बना दिया..........

Wednesday 12 August 2015

आपणो अलबेलो राजस्थान


वीरों का,अलबेलों का
धोरों का,महलों का
मेरा राजस्थान
मेलों का,त्योहारों का
रंग रंगीला राजस्थान
जंतर मंतर, आमेर
 बढाए जयपुर की शान
सूर्यनगरी जोधपुर
मारवाड़ की आन
झीलों की नगरी उदयपुर
प्रताप जन्म भूमी मेवाड़
गढ़ चित्तोड़ का सुनाता
पद्मनी जौहर की गाथा
पृथ्वीराज नगरी अजमेर में
बसती
ख्वाजा मोईनुद्दीन की
दरगाह
तीर्थ राज़ पुष्कर में स्थित
पवित्र सरोवर,ब्रह्मा मंदिर
शीश नवाता,स्नान करता
सारा हिन्दुस्तान
शूरवीरों की शौर्य गाथाओं का
मेरा राजस्थान
हाडोती,कोटा में चम्बल
विराजे
गंगानगर अन्न की खान
ऊंटों का गढ़ बीकानेर
हवेलियाँ देखो शेखावाटी की
भरतपुर में पंछी निहारो
जैसलमेर में सोन किला
घूम घूम कर देखो
मेरा राजस्थान
मीरा डूबी क्रष्ण प्रेम में
दयानंद  ने  लिया  निर्वाण
मकराना का संगेमरमर
ताजमहल की आन
धोलपुर का लाल पत्थर
बढाता लाल किले शान
खनिज संपदाओं से भरा
राजाओं,रजवाड़ों का
मेरा राजस्थान
जन्म भूमी पर मिटने
वालों की
आन,बान,शान का
मेरा राजस्थान

वेबसाइट से लाखों की कमाई


अब आप ब्लॉग और वेबसाइट से भी लाखों की कमाई कर सकते हैं. जानिए कैसे?
वेबसाइट से पैसा कमाने के कई तरीके मौजूद है. इन तरीकों को अपनाकर आप लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं.
आइए हम आपको बताते हैं कुछ लोकप्रिय तरीके-
गूगल एडसेंस-आप अपने ब्लॉग- वेबसाइट पर गूगल एडसेंस का एड लगाकर हर महीने लाखों कमा सकते हैं. गूगल एडसेंस का विज्ञापन टेक्स्ट, इमेज और वीडियो के रूप में होता है. इसके कोड को ब्लॉग-वेबसाइट पर डालने के बाद विज्ञापन दिखने लगता है.
जब भी कोई पाठक आपके गूगल एडसेंस के विज्ञापन को क्लिक करेगा. आपको पैसा मिलेगा. लेकिन आपको खुद इस विज्ञापन को क्लिक नहीं करना है या किसी से क्लिक करने के लिए नहीं कहना है. ऐसा करने पर आपका अकाउंट बैन हो सकता है.
एक बात ध्यान रखें कि विज्ञापन का प्लेसिंग सही हो. विज्ञापन वहां लगाएं जहां लोगों की नजर जरूर जाए और लोग उसे क्लिक करने से खुद को रोक ना पाए. अगर आपके ब्लॉग में फोटो और वीडियो नहीं के बराबर है या कम है तो सिर्फ टेक्स्ट एड लगाना आपके लिए बेहतर होगा.
एफिलिएट प्रोग्राम- अगर आपका ब्लॉग-वेबसाइट नया है तो गूगल एडसेंस अकाउंट खुलेने में टाइम लगेगा. एडसेंस के लिए आपको अप्लाई करना होगा. तब तक आप एफिलिएट प्रोग्राम का फायदा उठा सकते हैं. आप गूगल में जाकर affiliate programs सर्च कीजिए सैकड़ों ऑप्शन मिलेंगे. linkshare.com, dgmpro.com, flipkart.com, jabong.com, JeevanSaathi.com, Makemytrip.com, BharatMatrimony.com, LifepartnerIndia.com, Shaadi.com, Yatra.com, और india-herbs.com पर जाकर आप अपने ब्लॉग-वेबसाइट के हिसाब से एफिलिएट अकाउंट बना लीजिए और पैसा कमाइए.
पब्लिशर अकाउंट- वेबसाइट से पैसा कमाने का एक ऑप्शन पब्लिशर अकाउंट का भी है. गूगल एडसेंस वाले भी इसे लगाकर पैसा बना सकते है. इसके लिए आप OMG, Shoogloo, InfinityAds, BidVertiser, payoffers.in, clickbank.com, Commissionjunction.com, Admaya.com, cuelinks, komli और trootrac.com जैसी साइट पर जाकर अपना पब्लिशर अकाउंट बनाइए. लेकिन एक साथ कई विज्ञापन डालने से बचिए. ऐसा ना लगे कि ब्लॉग, साइट पर सिर्फ विज्ञापन ही विज्ञापन है.
अमेजन और इबे अकाउंट-Amazon.com और Ebay.com भी काफी लोकप्रिय है. अमेजन और इबे पर अकाउंट बनाकर आप इसके उत्पादों के एड को वेबसाइट पर लगाकर कमा सकते है. आपको सेल के हिसाब से कमीशन मिलेगा.
चितिका-Chitika.com पर जाकर भी आप अपना अकाउंट बना सकते हैं. Chitika आपके ब्लॉग-वेबसाइट के अनुसार विज्ञापन दिखाता है.
पोल और सर्वे- दुनिया भर में ऐसी सैकड़ों कंपनियां और एजेंसियां है जो सर्वे के बदले में पैसे का भुगतान करती है. सर्वे और पोल इस हिसाब से पैसा कमाने के लिए यह एक अच्छा जरिया है. पोल, सर्वे का एक फायदा यह भी है कि इसके कारण लोग आपके ब्लॉग पर ज्यादा देर पर रहते हैं.
समीक्षा- आप किसी प्रॉडक्ट, फिल्म समीक्षा से भी पैसा कमा सकते हैं. प्रॉडक्ट लांच के समय या फिल्म रिलीज के समय इससे जुड़े लोग पॉजीटिव रिव्यू करने वाले को भुगतान भी करते हैं. इसके लिए आपको उनके संपर्क में रहना होगा.
इन टेक्स्ट लिंक एड-कई साइट या ब्लॉ़ग पर आप कई देखते होंगे कि किसी लिंक के नीचे दो-दो लाइन है. आमतौर पर हाइपर लिंक में कलर चेंज हो जाता है लेकिन इसके नीचे दो लाइन होते हैं और वहां पर कर्सर ले जाने पर एक बॉक्स खुलता है. आप इसके लिए infolinks, Kontera, Text-Link-Ads, Text-Link-Brokers और Vibrant Media की साइट पर जाकर अपना अकाउंट बना सकते हैं.
जॉब बोर्ड एड- आप अपने ब्लॉग-वेबसाइट पर JobThread और Job Board का एड लगाकर भी कमा सकते हैं. इसमें नौकरी के बारे में जानकारी होती है और लोग इसे क्लिक भी काफी करते हैं. पैसा कमाने का यह बढ़िया तरीका है.
यूट्यूब पार्टनर- अगर आप वीडियो फोटोग्राफी के शौकीन हैं. मोबाइल, एचडी कैमरा या मिनीकैम से फोटोग्राफी करते रहते हैं तो अपने वीडियो को दुनिया को तो दिखाइए ही साथ ही जमकर कमाई भी कीजिए.
इसके लिए आपको यूट्यूब पर अपना अकाउंट बनाना पड़ेगा. अकाउंट बनाने के बाद आप जो भी वीडियो लें उसे यूट्यूब पर अपलोड करते जाइए. ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने वीडियो के बारे में बताइए. फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उसके बारे में लोगों को बताइए. जितना ज्यादा लोग आपके वीडियो को देखेंगे आपको उतना ज्यादा पैसा मिलेगा.
यूट्यूब पर ध्यान रखिएगा कि म्यूजिक आपका ऑरिजनल हो. किसी बॉलीवुड-हॉलीवुड फिल्म का संगीत होने पर यूट्यूब आपको बैन कर सकता है.
वीडियो पर आपका अपना कॉपीराइट होना चाहिए ऐसा नहीं कि कहीं से उठाकर यूट्यूब पर डाल दिया.
Thanks
AS choudhary

आपणो जोधपुर


राजस्थान का दिल 'जोधपुर'

आज हम आपको राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर लेकर चलते हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर के बाद सर्वाधिक चहल-पहल वाला शहर है जोधपुर। 1459 में राठौड़ वंश के प्रमुख राव जोधा ने जोधपुर की स्थापना की। राजस्थान के बीचोंबीच होने से इस शहर को राजस्थान का दिल भी कहते हैं।

ND
राठौड़ वंश के मुगलों के साथ अच्छे संबंध थे। महाराजा जसवंतसिंह (1678) ने शाहजहाँ को सम्राट के सत्तायुद्ध में मदद की थी। औरंगजेब के काल में मुगलों के साथ इनके संबंध बिगड़ गए। औरंगजेब की मृत्यु के बाद महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को अजमेर से खदेड़ दिया। महाराजा उमेदसिंह के काल में जोधपुर एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित हुआ। मध्ययुगीन काल से जोधपुर के शाही परिवारों का पारंपरिक खेल पोलो रहा है। जोधपुर में थलसेना और वायुसेना की बड़ी छावनी है।
प्रमुख पर्यटन स्थल
उमेद भवन पैलेस :
महराजा उमेदसिंह (1929-1942) ने उमेद भवन पैलेस बनवाया था। यह महल छित्तर महल के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह महल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। हाथ से तराशे गए पत्थरों के टुक़डे अनोखे ढंग से एक-दूसरे पर टिकाए गए हैं। इनमें दूसरा कोई पदार्थ नहीं भरा गया है। महल के एक हिस्से में होटल और दूसरे में संग्रहालय है, जिसमें आधुनिक हवाई जहाज, शस्त्र, पुरानी घड़ियाँ, कीमती क्रॉकरी तथा शिकार किए जानवर रखे गए हैं।
मेहरानगढ़ किला : 150
मीटर ऊँचे टीले पर स्थित मेहरानगढ़ किला राजस्थान का बेहतरीन और अजेय किला है। राव जोधा ने 1459 में इसका निर्माण किया, लेकिन समय-समय पर शासकों ने उसमें बढ़ोतरी की। शहर से 5 किमी दूर घुमावदार रास्ते से किले में प्रवेश किया जा सकता है।
जयपुर की सेना के दागे तोपगोलों के निशान आज भी दिखाई देते हैं। बाईं ओर किरतसिंह सोड़ा नामक सिपाही की छतरी है, जिसने आमेर की सेना के खिलाफ लड़ते हुए प्राण त्याग दिए थे। विजय द्वार महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को मात देने की स्मृति में बनवाया था।
यहाँ फूल महल, झाँकी महल भी दर्शनीय है। किले से नीचे जाते हुए महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की संगमरमर की छतरी है। यहाँ तक जाने का रास्ता पथरीले टीलों से होकर गुजरता है|


मंडोर गार्डन :
मारवाड़ के महाराजाओं की पहली राजधानी मंडोर थी। जोधपुर से 5 मील दूरी पर स्थित इस गार्डन में बनी छतरियाँ हिन्दू मंदिर के अनुसार बनवाई गई थीं, जो चार मंजिला ऊँची हैं। सबसे बेहतरीन छतरी महाराजा अजीतसिंह (1678-1724) की है। शूरवीरों की मूर्तियाँ पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

ND
जोधपुर के आसपास
थार रेगिस्तान का प्राचीन शहर ओसियन में ब्राह्मणी और जैन शैली के मंदिर हैं। इनकी वास्तुकला अत्यंत सुंदर है। सन-सेट के वक्त यहाँ ऊँट की सवारी बहुत आकर्षक लगती है। गुड़ा में वन्य जीव तथा प्रकृति की सुंदर छटा निहारने का उत्तम स्थान है। हजारों पंछी यहाँ प्रतिवर्ष आते हैं। कायलाना तालाब का सौन्दर्य देखने लायक है।
तालाब से 1 किमी दूर माचिया सफारी पार्क है। यहाँ हिरण, मरूस्थल की लोमड़ी, नीलगाय, खरगोश, जंगली बिल्ली, मुंगूस, बंदर आदि काफी संख्या में पाए जाते हैं। पालीवाल ब्राह्मणों के नाम से प्रसिद्ध पाली में सोमनाथ तथा नौलखा मंदिर काफी पुराने हैं, जो अपनी शिल्पकला के लिए मशहूर हैं।
सोजत शहर पाली के पास सुकरी नदी के किनारे बसा है। इसका पुराना नाम तमरावती है। किले में बड़ा जलाशय और सेजला माता सहित अन्य मंदिर हैं। उर्स के दौरान मीर मस्तान की दरगाह मुख्य आकर्षण है। मेहंदी के पेड़ यहाँ प्रसिद्ध है, जो बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक अपने हाथ-पैरों में मेहंदी लगवाना नहीं भूलते।
मीराबाई की जन्मस्थली कुरकी भी यहीं है। निमज में स्थित देवी दुर्गा का मंदिर 9वीं शताब्दी में निर्मित है। नाड़ोल एक छोटा सा गाँव है, जो किसी जमाने में शाकंभरी के चौहानों की राजधानी थी। धानेराव तथा औवा के मंदिर भी दर्शनीय हैं। नागौर में अहिच्छत्रगढ़ किले को मुगल सम्राट अकबर तथा शाहजहाँ ने बनवाया था। यह मुगल बगीचा आज भी उतना ही तरोताजा लगता है। शहर तथा इमारतों पर मुस्लिम प्रभाव झलकता है। रामदेवजी और तेजाजी का मेला प्रसिद्ध है|

राम राम सा|

आपणे मन री बात

राजस्थान खास क्यों हैं...??? जैसा हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता है.....वैसा मेरा राजस्थान नहीं है ........! हिंदी सिनेमा जगत में राजस्थान को माफिया लोगो का अड्डा - गुंडा राज दिखा कर... राजस्थान की छवि लोगों ने खराब बना दी है.... सच तो सच है....??? देखिये... 1. हमारे राज्य में बलात्कार के मामले दिल्ली के मुकाबले... 0/10 है....... जबकि आबादी दिल्ली से कई गुना अधिक...!! 2. दंगो में हज़ारो लोग यूपी में मारे गए हैं राजस्थान में 1 भी नहीं ..!! 3. Murder Rate 0/2 है मुंबई से... कही कम ही..!! 4. हमें बेबकूफ समझा जाता है...तो दोस्त सुनो हमारा राजस्थान अकेले इतने सैनिक देश को देता है जितना केरला, आन्ध्र-प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात मिलकर भी नहीं दे पाते.....!! 5. कर्नल सूबेदार सबसे ज्यादा राजस्थान से है...!! 6. उच्च शिक्षण संस्थानों में राजस्थानी इतने हैं कि महाराष्ट्र और गुजरात मिलाने से भी बराबरी नहीं कर सकते......... 7. राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहाँ किसान कृषि कारणों से आत्म- हत्या नहीं करतें जैसा कि मीडिया दिखाता है क्यूकि राजस्थान में बुज़दिल नही दिलेर पैदा होते है...!! 8. आज भी राजस्थान में सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार है...!! 9. हम एक रिक्शा चलाने वालों को भी भाई कह कर बुलाते हैं...!! " मैं राजस्थान से हूँ " और राजस्थान से ज्यादा महफूज अपने आप को कहीं नहीं पाता... हमारे लोगों ने कभी किसी राज्य के लोगों का विरोध नहीं किया... किसी सम्प्रदाय को नही दबाया.... यूपी में दंगे होते रहते है राजस्थान में धर्म के नाम पर कभी दंगा नही हुआ । यहाँ संस्कार बसतें है...!!. . मुझे नाज है मैं राजस्थान से हूँ राजस्थान मेरे रगों में बसता है...!!! अगर राजस्थान होने पर गर्व है तो इस एस एम एस को इतना Share करो कि ये हर राजस्थान के मोबाइल मे हो......... जय राजस्थान..... म्हारो प्यारो राजस्थान..... म्हारो रंगीलो राजस्थान...

Tuesday 11 August 2015

मोबाइल मसाला


एक मोबाइल से दुसरे मोबाइल में बैलेंस ट्रान्सफर कैसे करें

मोबाइल आज के समय में सबकी जरुरत बन गया है. चाहे छोटा हो या बड़ा, हर कोई मोबाइल का इस्तेमाल करता है. मोबाइल के सहारे ही हम घर से दूर जाने पर परिवार के लोगों से बात कर पाते हैं, लेकिन यह बातें तब तक ही हो पाती है, जबतक की उसमे बैलेंस रहता है. वैसे तो आकर रिचार्ज करने की सुविधा हर जगह उपलब्ध है, लेकिन कभी-कभी मोबाइल का बैलेंस ऐसी जगह ख़त्म होता है, जहाँ मोबाइल रिचार्ज करने की सुविधा नहीं होती है. इस परेशानी से छुटकारा हम आसानी से पा सकते हैं. एक मोबाइल से दुसरे मोबाइल में बैलेंस ट्रान्सफर करके. हम जब चाहें अपना बैलेंस अपने फ्रेंड या किसी रिश्तेदार के मोबाइल में अपना बैलेंस ट्रान्सफर कर सकते हैं, वो भी बहुत आसानी से. ADS...
बस इसके लिए हमें थोड़ा शुल्क अदा करना होगा. इस सुविधा के जरिये हम 5 रूपए से लेकर 100 रूपए तक बैलेंस ट्रान्सफर कर सकते है. बशर्ते दोनों नंबरों का नेटवर्क एक होना चाहिए. मैं यहाँ पर आपको एक आसान से ट्रिक के बारें में बता रहा हूँ, जिससे आप एक मोबाइल का बैलेंस दुसरे मोबाइल में आराम से ट्रान्सफर कर सकते हैं..
Airtel मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर
अगर आपके पास एयरटेल का सिम है तो आप अपने मोबाइल से *141# डायल करें और सभी निर्देशों का पालन करते हुए किसी भी एयरटेल नेटवर्क पर 5 रूपए से लेकर 50 रूपए तक का बैलेंस ट्रान्सफर कर सकते हैं. एयरटेल नेटवर्क पर बैलेंस ट्रान्सफर करने के लिए आपको 2 या 4 रूपए अतिरिक्त चुकाना होगा.
Aircel मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर
अगर आपके पास aircel का सिम है तो आप किसी भी aircel नेटवर्क पर 5 रूपए से लेकर 100 रूपए तक का बैलेंस ट्रान्सफर कर सकते हैं. बैलेंस ट्रान्सफर करने के लिए आपको अपने Aircel सिम से *122*666# डायल करना होगा. नम्बर डायल करने के बाद वो नम्बर डालें जिस नम्बर पर आपको बैलेंस ट्रान्सफर करना है.
IDEA मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर
अपने Idea नंबर से दुसरे आईडिया नंबर पर बैलेंस ट्रान्सफर करने के लिए आपको एक मेसेज टाइप करना होगा: GIVE (space) Mobile Number (space) Amount लिख कर 55567 पर भेज दे. जैसे GIVE 9852XXXXXX 50 लिख कर 55567 पर SMS करना है. ऐसा करते ही उस मोबाइल नंबर पर उतना बैलेंस ट्रान्सफर हो जायेगा.
BSNL मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर
अगर आपके पास BSNL का सिम है तो उसमे भी आपको बीएसएनएल नेटवर्क पर बैलेंस ट्रान्सफर करने के लिए मेसेज बॉक्स में जाकर एक मेसेज टाइप करना होगा, जिसमे आपको लिखना है : GIFT <SPACE> AMMOUNT <SPACE>MOBILE NUMBER लिख कर 53733 पर मेसेज भेज दें, ऐसा करते ही आपका बैलेंस उस BSNL नंबर पर ट्रान्सफर हो जायेगा, जिसका आप मेसेज में लिखोगे. जैसे की : GIFT 50 9473XXXXXX.
RELIANCE मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर
अगर आपके पास रिलायंस gsm का सिम है तो बैलेंस ट्रान्सफर करने के लिए आपको अपने रिलायंस मोबाइल से 367 नंबर डायल करना होगा और निर्देशों का पालन करते हुए आगे बढ़ना होगा. डिफ़ॉल्ट पिन के रूप में आपको 1 दबाना होगा. ऐसा करते ही आपका बैलेंस उस रिलायंस नंबर पर ट्रान्सफर हो जायेगा, जो नंबर आप टाइप करोगे.
UNINOR मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर
Uninor का सिम इस्तेमाल करने वालों को Uninor नेटवर्क पर बैलेंस भेजने के लिए *202*mobile number*Ammount# लिखकर डायल करना होगा. ऐसा करते ही आपका बैलेंस उस नंबर पर ट्रान्सफर हो जायेगा.
VODAFONE मोबाइल से बैलेंस ट्रान्सफर

अगर आपके पास VODAFONE का नंबर है तो आपको दुसरे वोडाफोन उपभोक्ता के नंबर पर बैलेंस ट्रान्सफर करने के लिए *131*AMOUNT*MOBILE NUMBER (जिसपर बैलेंस भेजना है )# डायल करना होगा. ऐसा करते ही VODAFONE उपभोक्ता के पास बैलेंस ट्रान्सफर हो जायेगा.

इंसान की मेहनत


इसान दुनिया मे तीन चीजो के लिए मेहनत करता है
इंसान दुनिया में तीन चीज़ो के लिए मेहनत
करता है
1-मेरा नाम ऊँचा हो .
२ -मेरा लिबास अच्छा हो .

3-मेरा मकान खूबसूरत हो ..
लेकिन इंसान के मरते ही भगवान
उसकी तीनों चीज़े
सबसे पहले बदल देता है
१- नाम = (स्वर्गीय )
२- लिबास = (कफन )
३-मकान = ( श्मशान )
जीवन की कड़वी सच्चाई जिसे हम
समझना नहीं चाहते
ये चन्द पंक्तियाँ
जिसने भी लिखी है
खूब लिखी है
एक पथ्थर सिर्फ एक बार मंदिर जाता है
और भगवान बन जाता है ..
इंसान हर रोज़ मंदिर जाते है फिर भी पथ्थर
ही रहते है ..!!
NICE LINE
एक औरत बेटे को जन्म देने के लिये
अपनी सुन्दरता त्याग देती है.......
और
वही बेटा एक सुन्दर बीवी के लिए
अपनी माँ को त्याग देता है
********[**********]*****
जीवन में हर जगह
हम "जीत" चाहते हैं...
सिर्फ फूलवाले की दूकान ऐसी है
जहाँ हम कहते हैं कि
"हार" चाहिए।
क्योंकि
हम भगवान से
"जीत" नहीं सकते।
➖➖➖➖➖
ज़िन्दगी पल-पल ढलती है,
जैसे रेत मुट्ठी से फिसलती है...
शिकवे कितने भी हो हर पल,
फिर भी हँसते रहना...
क्योंकि ये ज़िन्दगी जैसी भी है,
बस एक ही बार मिलती है।

रंग रंगीलो राजस्थान


राजस्थान का रहन सहन और वेशभुषा
राजस्थान देश भर में
अपनी संस्कृति तथा प्राकृतिक विविधता के
लिए जाना जाता है। राजस्थान के रीति-
रिवाज, यहां के
लोगों का पहनावा तथा भाषा सादगी के साथ-
साथ अपनेपन का भी अहसास कराती है।
राजस्थान में लोगों को अपनी एकता के लिए
जाना जाता है। राजस्थान के रीति-रिवाज,
वेशभूषा तथा भाषा में सादगी के साथ अपनापन
भी है। राजस्थान के लोगों का रहन-सहन
सादा और सहज है। राजस्थान के लोग जीवटवाले
तथा ऊर्जावन होते हैं साथ ही जीवन के हर पल
का आनंद उठाते हैं। राजस्थानी महिलाएं
अपनी सुंदरता के लिए मशहूर हैं। राजस्थान के लोग
रंगीन कपड़े और आभूषणों के शौकीन हैं। रहन-सहन,
खान-पान और वेशभूषा में समय के साथ थोड़ा-बहुत
परिवर्तन तो आया है, लेकिन राजस्थान
अभी अन्य प्रदेशों की तुलना में अपनी संस्कृति,
रीति-रिवाजों और परंपराओं को सहेजे हुए है।
राजस्थान में भोजन वहां की जलवायु के आधार पर
अलग-अलग प्रकार से बनता है। पानी और
हरी सब्जियों की कमी होने की वजह से
राजस्थानी व्यंजनों की अपनी एक अलग
ही शैली है। राजस्थानी व्यंजनों को इस तरह से
पकाते हैं कि वो लंबे समय तक खराब नहीं होते
तथा इन्हें गरम करने
की आवश्यकता भी नहीं होती।
रेगिस्तानी जगहों जैसे - जैसलमेर, बाड़मेर और
बीकानेर में दूध, छाछ और मक्खन पानी के स्थान
पर प्रयोग किया जाता है। राजस्थान में अधिकतर
खाना शुद़्ध घी से तैयार किया जाता है। यहां पर
दाल-बाटी-चूरमा बेहद मशहूर है। जोधपुर
की मावा कचौड़ी, जयपुर का घेवर, अलवर
की कलाकंद और पुष्कर का मालपुआ, बीकानेर के
रसगुल्ले, नमकीन भुजिया, दाल का हलवा, गाजर
का हलवा, जलेबी और रबड़ी विशेष रूप से प्रसिद्ध
है। भोजन के बाद पान
खाना भी यहां की परंपरा में शुमार है।
राजस्थानी वेशभूषा
राजस्थान के लोगों का पहनावा रंग-रगीला है।
रेत और पहाड़ियों के सुस्त रंगों के बीच चमकीले
रंगों की पोशाक राजस्थान के लोगों को जीवंत
बनाती है। सिर से लेकर पांव तक, पगड़ी, कपड़े, गहने
और यहां तक कि जूते भी राजस्थान की आर्थिक
और सामाजिक स्थिति को दर्शाते हैं।
सदियों बीत जाने के बाद
भी यहां की वेशभूषा अपनी पहचान बनाये हुए है।
राजस्थान की जीवन शैली के आधार पर अलग-
अलग वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग परिधान के
अंतर्गत पगड़ी यहां के लोगों की शान और मान
का प्रतीक है। यहां के लोग 1000 से भी अधिक
प्रकार से पगड़ी बांधते हैं। कहा जाता है
कि यहां हर 1 किमी. से पगड़ी बांधने
का तरीका बदल जाता है। पुरुष पोशाक में पगड़ी,
अंगरखा, धोती या पजामा, कमरबंद
या पटका शामिल है और महिलाओं की पोशाक में
घाघरा, जिसे लंबी स्कर्ट भी कहते हैं,
कुर्ती या चोली और ओढ़नी शामिल हैं। घाघरे
की लंबाई थोड़ी छोटी होती है ताकि पांव में
पहने गहने दिखायी दे सकें और ओढ़नी घूंघट करने के
काम आती है।
ऊंट, बकरी और भेड़ की खाल से बने जूते पुरुष और
महिलाओं के जरिये पहने जाते हैं। मखमल या जरी के
ऊपर कढ़ाई कर के जूते के बाहरी भाग पर
चिपकाया जाता है। जैसलमेर, जोधपुर,
रामजीपुरा और जयपुर
की जूतियां पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।

आपणा नेता


गरीबी हटाने के लिए नेता
'सेमिनार' मनाते है
होटल में बेठ बेठ
वो डिन्नर जमके खाते है
मोटे मोटे अफसर नेता
...एक स्वर में ये गाते है
गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ
और धन उनका हड़प जाते है
किस से छुपा है ये कटु सत्य की
लाखो गरीबन एक समय ही खाते है
सब लेके घूम रहे दूरबीन तो क्या
गरीबी की रेखा को ना देख वो पाते है
ग्रामीण विकास की योजना में
मिलती लाखो की धन राशी
चने बाँट कर गावों में
खुद मलाई-कोफ्ता खाते है
सफ़ेद कपडे और मन हे मैले
फिर भी प्रतिष्टा पाते है
हाय! विधाता तू ही देख
क्या वो 'इंसान' कहलाते है...??

मेरा प्यारा राजस्थान


मेरा प्यारा राजस्थान. …..
आँखों के दरमियान मैं गुलिस्तां दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मैं आपको राजस्थान दिखाता हुँ|
खेजड़ी के साखो पर लटके फूलो की कीमत बताता हुँ,
मै साम्भर की झील से देखना कैसे नमक उठाता हुँ|
मै शेखावाटी के रंगो से पनपी चित्रकला दिखाता हुँ,
महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा सुनाता हुँ|
पद्मावती और हाड़ी रानी का जोहर बताता हुँ,
पग गुँघरु बाँध मीरा का मनोहर दिखाता हुँ|
सोने सी माटी मे पानी का अरमान बताता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ|
हिरन की पुतली मे चाँद के दर्शन कराता हुँ,
चंदरबरदाई के शब्दों की वयाख्या सुनाता हुँ|
मीठी बोली, मीठे पानी मे जोधपुर की सैर करता हुँ,
कोटा, बूंदी, बीकानेर और हाड़ोती की मै मल्हार गाता हुँ|
पुष्कर तीरथ कर के मै भगवान् को माला चढ़ाता हुँ,
जयपुर के हवामहल मै, गीत मोहबत के गाता हुँ|
जीते सी इस धरती पर स्वर्ग का मैं वरदान दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ||
कोठिया दिखाता हुँ, राज हवेली दिखाता हुँ,
नज़्ज़रे ठहर न जाए कही मै आपको कुम्भलगढ़ दिखाता हुँ|
घूंघट में जीती मर्यादा और गंगानगर का मतलब समझाता हुँ,
तनोट माता के मंदिर से मै विश्व शांति की बात सुनाता हुँ|
राजिया के दोहो से लेके, जाम्भोजी के उसूल पढ़ाता हुँ,
होठो पे मुस्कान लिए, मुछो पे ताव देते जाट (JAT) की परिभाषा बताता हुँ|
सिक्खो की बस्ती मे, पूजा के बाद अज़ान सुनाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान दिखाता हुँ| — 

जय जय राजस्थान
राम राम सा

आपणो राजस्थान


राजस्थान - एक परिचय
राजस्थान हमारे देश का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य हैं, जो हमारे देश के उत्तर-पश्चिम मे स्थित है। यह भू-भाग प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक कई मानव सभ्यताओ के विकास एवं पतन की स्थली रहा है। यहाँ पूरा-पाषाण युग, कांस्य युगीन सिंधु सभ्यता की प्राचीन बस्तियाँ, वैदिक सभ्यता एवं ताम्रयुगीन सभ्यताएँ खूब फली फूली थी। छठी शताब्दी के बाद राजस्थानी भू-भाग मे राजपुत राज्यो का उदय प्रारम्भ हुआ। जो धीरे धीरे सम्पूर्ण क्षेत्र मे अलग-अलग रियासतो के रूप मे विस्तृत हो गयी। ये रियासते राजपूत राजाओ के अधीन थी। राजपूत राजाओ की प्रधानता के कारण कालांतर मे इस सम्पूर्ण क्षेत्र को 'राजपूताना' कहा जाने लगा। वाल्मीकि  ने राजस्थान प्रदेश को 'मरुकांतार' कहा है।

            राजस्थान शब्द का प्राचीनतम प्रयोग 'राजस्थानीयादित्य' वी.स. 682 मे उत्कीर्ण वसंतगढ़ (सिरोही) के शिलालेख मे उपलब्ध हुआ है। उसके बाद मुहणौत नैन्सी के ख्यात व रजरूपक में राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ है। परंतु इस भू-भाग के लिए राजपूताना शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1800 ई. मे जॉर्ज थॉमस द्वारा किया गया था। कर्नल जेम्स टोड (पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यो के पॉलिटिकल एजेंट) ने इस राज्य को 'रायथान' कहा, क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल मे राजाओ के निवास को रायथान कहते थे। उन्होने 1829 ई. मे लिखित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक 'Annals & Antiquities of Rajas'than' or Central and Western Rajpoot States of India) मे सर्वप्रथम इस भौगोलिक प्रदेश के लिए 'Rajas'than' शब्द प्रयुक्त किया। स्वतन्त्रता के पश्चात 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से इस प्रदेश का नाम 'राजस्थान' स्वीकार किया गया।