Thursday 13 August 2015

रक्षाबंधन


रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास
की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में
मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी)
या सलूनो भी कहते हैं।
[1] ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार 2012
में रक्षाबन्धन गुरुवार, 2 अगस्त को मनाया गया।
[2]
रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है।
राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे,
रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक
की हो सकती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई
को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में
छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे
पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है।
कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित
व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है।
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने
की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है।
[3] हिन्दुस्तान में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये
एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं।
[4] हिन्दू धर्म के
सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय
कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक
का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा
बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह श्लोक रक्षाबन्धन
का अभीष्ट मन्त्र है।
[क] इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है-
"जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र
राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ,
तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"
अनुष्ठान

मुख्य लेख : रक्षासूत्र

प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियाँ और महिलाएँ
पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली
या हल्दी , चावल , दीपक , मिठाई और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के
और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये
पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता
की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई
का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और
सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है,
दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है और पैसों से
न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बाँट दिया जाता है। भारत के
अनेक प्रान्तों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियाँ
लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है।
इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद
ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और
खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्व रक्षाबन्धन में
भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्वपूर्ण होता है
और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत
रखने की भी परम्परा है। पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह
यजमानों के घर पहुँचकर उन्हें राखी बाँधते हैं और बदले में धन
वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय समाज
में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है
कि इसका सामाजिक महत्व तो है ही, धर्म , पुराण, इतिहास ,
साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।

1 comment:

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